घर के अंदर स्त्रियाँ

1 min read
घर के अंदर स्त्रियाँ

रातों को जो
घरों से बाहर नहीं निकलती हैं
वो स्त्रियाँ
उगा लेती हैं
आकाशगंगा छतों पर।

दीवारों पर खिला देती हैं वसंत
खिड़की में टांग देती हैं चाँद
और उनकी पलंग की सिलवटों में बहने लगती हैं
न जाने कितनी
प्रतीक्षा की नदियाँ

पर्दों में होता है
दुनिया का भूगोल

झिंगुरों के गीतों में
तल लेती हैं
न जाने कितनी ही पूरियाँ

और नींद की पगडंडियों पे
चलती रहती हैं निर्विघ्न
धूप की बाहें
थामकर

गुँजन उपाध्याय पाठक
+ posts

गुँजन उपाध्याय पाठक हिंदी कविता में नयी मगर समर्थ व् सशक्त कवियित्रियों में से एक हैं। आप इन दिनों पटना में रहती हैं। आपसे gunji.sophie@gmail.com पे बात की जा सकती है।

गुँजन उपाध्याय पाठक हिंदी कविता में नयी मगर समर्थ व् सशक्त कवियित्रियों में से एक हैं। आप इन दिनों पटना में रहती हैं। आपसे gunji.sophie@gmail.com पे बात की जा सकती है।

नवीनतम

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो

कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन

भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से