इश्क़ में जाँ से गुज़रते हैं गुज़रने वाले
मौत की राह नहीं देखते मरने वाले
आख़िरी वक़्त भी पूरा न किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गये मरने वाले
उठ्ठे और कूच-ए-महबूब में पहुँचे आशिक़
ये मुसाफ़िर नहीं रस्ते में ठहरने वाले
जान देने का कहा मैंने तो हँसकर बोले
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मरने वाले
आस्माँ पे जो सितारे नज़र आये ‘आमीर’
याद आये मुझे दाग़ अपने उभरने वाले

अमीर मिनाई
मुंशी अमीर अहमद "मीनाई" (जन्म १८२८-मृत्यु १९००) एक उर्दू शायर थे। 1857 के ग़दर के बाद ये रामपुर चले आए और ४३ वर्षों तक वहाँ रहे। १९०० में हैदराबाद जाने के बाद इनकी मृत्यु हो गई। इन्होंने २२ किताबें लिखीं जिसमें ४ दीवान (ग़ज़ल संग्रह) हैं।