एक जवान होती लड़की
केवल देह होती है
सावन चढ़े आकाश के नीचे
पूरा भूगोल होती है
एक उमड़ी-सी नदी – डगमगाती नाव को
भरमाती भँवर होती है
दूरागत लोक धुनि की ओर
ठिठकी साँस होती है
आयु के लम्बे बरस के बीच
महकी फगुनाहट धूप होती है
धरती के उमगते वक्ष पर
बौखलाई सौन्धी गन्ध होती है
चारों युगों के बीच कलियुग
कलियुग के बीच कालीदास होती है
बोलने की सब विधाओं में
कविता गीत होती है
कविता के लजीले रूप गौरव में
छायावाद होती है
हड्डियों के चौखटे में बन्द
पलकों के कपाटों बीच
उझकती रोशनी की कम्प होती है
घर की प्यास होती है
एक भूखे और नंगे देश की
राजधानी में
कैबरे की नाच होती है।

मानबहादुर सिंह
मानबहादुर सिंह (1938-1996) हिंदी कविता के महनीय कवियों में से एक थे। आप मूलतः उत्तर प्रदेश से आते हैं। आपकी प्रमुख कृतियाँ - बीड़ी बुझने के करीब, भूतग्रस्त, लेखपाल तथा अन्य कविताएँ, मां जानती है, आदमी का दु:ख (पाँच कविता-संग्रह) हैं।