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सोवित श्रीमन
सोवित श्रीमन मूलतः समस्तीपुर से हैं और इन दिनों केंद्रीय कर विभाग में निरीक्षक के पद पर मुंबई में कार्यरत हैं. आपसे sovitsriman@gmail.com पे बात की जा सकती है.
फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की
तुम्हें ढोना है समय का भार, थोड़ी सी चाल तेज करो थोड़ी और तेज, और तेज
पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप
तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो
मेरे रब की मुझ पर इनायत हुई कहूँ भी तो कैसे इबादत हुई हक़ीक़त हुई जैसे
स्वप्न में तुम हो तुम्हीं हो जागरण में कब उजाले में मुझे कुछ और भाया, कब
नावों ने नदियों का साथ कभी नहीं छोड़ा बेतवा को अमावस में जब पार किया तो
भाषा कई बार बिलकुल असहाय हो जाती है कभी-कभी ग़ैरज़रूरी और हास्यास्पद भी बिना बोले भी
समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन
एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से