हर ईंट सोचती है कि दीवार उस से है
हर सर यही समझता है दस्तार उस से है
है आग पेट की तभी छम-छम है रक़्स में
पायल समझती है कि ये झंकार उस से है
उम्मीद उन से कोई लगाना ही है फ़ुज़ूल
हर मंत्री की सोच है सरकार उस से है
घर को बनाएँ घर सदा घर के ही लोग सब
और आदमी समझता है परिवार उस से है
करती हैं पार कश्ती दुआएँ ही अस्ल में
माँझी का सोचना है कि पतवार उस से है
इंसान का ग़ुरूर ये कहने लगा है अब
संसार से नहीं है वो संसार उस से है
कैसे बनेगी बात मोहब्बत की ऐ ‘रजत’
इज़हार अब तलक न किया प्यार उस से है
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गुरचरन मेहता रजत
गुरचरन मेहता रजत दिल्ली से हैं और हिंदी उर्दू भाषा के जाने माने शायरों में शुमार हैं।