1. कानपुर सामने आँगन में फैली धूप सिमटकर दीवारों पर चढ़ गई और कंधे पर बस्ता लटकाए नन्हे-नन्हे बच्चों के झुंड-के-झुंड दिखाई दिए, तो एकाएक ही मुझे समय का आभास हुआ। घंटा
रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को ‘कोंचा’ की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी
Moreआठ बज गए। दूधवाले का अभी तक कोई अतापता नहीं था। पानी धुंआधार बरस रहा था। बादल जैसे आज ही गरज-बरस कर साल भर का कोटा पूरा करने पर आमादा थे। माया
Moreआज बंटू बहुत ख़ुश था क्योंकि आज वह अपने परिवार के साथ हिल स्टेशन पर पिकनिक मनाने जा रहा था। सुबह बहुत जल्दी वह सब निकल गए। जैसे-जैसे हिल स्टेशन नज़दीक आ रहा
Moreसुबह की पहली किरण की तरह वो मेरे आंगन में छन्न से उतरी थी। उतरते ही टूटकर बिखर गई थी। और उसके बिखरते ही सारे आंगन में पीली-सी चमकदार रोशनी कोने-कोने तक
Moreकिसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर
Moreउस कस्बानुमा शहर के मास्टर कुमार विनय को आजकल क्यों लग रहा है कि उसके साथ दूसरी बार धोखा किया जा रहा है? पहली बार जब हुआ तो प्रसंग दूसरा था और
Moreवह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज मिला दी थी कि खाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस
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