नैना जोगिन

रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को ‘कोंचा’ की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी

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बंदिनी

डा. कंचन का फोन आया था, “आज हमारे कारावास में कान्हा ने जन्म लिया है, सुमि।’’ उस समय मैं अपने घर में जन्माष्टमी की झाँकी सजा रही थी। डा. कंचन इस शहर

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ख़ामोश चिंताएँ

आठ बज गए। दूधवाले का अभी तक कोई अतापता नहीं था। पानी धुंआधार बरस रहा था। बादल जैसे आज ही गरज-बरस कर साल भर का कोटा पूरा करने पर आमादा थे। माया

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बंटू ने भगाया राक्षस

आज बंटू बहुत ख़ुश था क्योंकि आज वह अपने परिवार के साथ हिल स्टेशन पर पिकनिक मनाने जा रहा था। सुबह बहुत जल्दी वह सब निकल गए। जैसे-जैसे हिल स्टेशन नज़दीक आ रहा

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प्रसिद्धि

“ये कहानी है?”…. नव्या की लिखी रचना को प्रकाशक फेंकते हुए बोला। “ना कोई रस ना आकर्षण।” “मैं समझी नहीं सर …कैसा आकर्षण?” “एक सच्चे प्रेम पर कुछ लिखने की कोशिश की

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प्रेतकल्प

ओ समय! किस घाट पर खड़े हो अन्यमनस्क किस प्रतीक्षा की देहरी पर टिके हो ध्यानापन्न कहाँ ले जाओगे इतना बड़ा न्यायशास्त्र ढोकर अपनी रीढ़ पर चल रहे हो या क्लांत पड़े

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कल कहाँ जाओगी

सुबह की पहली किरण की तरह वो मेरे आंगन में छन्न से उतरी थी। उतरते ही टूटकर बिखर गई थी। और उसके बिखरते ही सारे आंगन में पीली-सी चमकदार रोशनी कोने-कोने तक

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर

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एक निर्णायक पत्र

उस कस्बानुमा शहर के मास्टर कुमार विनय को आजकल क्यों लग रहा है कि उसके साथ दूसरी बार धोखा किया जा रहा है? पहली बार जब हुआ तो प्रसंग दूसरा था और

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मेरा दुश्मन

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज मिला दी थी कि खाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस

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