आधे घंटे का ख़ुदा

वो आदमी उसका पीछा कर रहे थे। इतनी बुलंदी से वो दोनों नीचे सपाट खेतों में चलते हुए दो छोटे से खिलौनों की तरह नज़र आ रहे थे। दोनों के कंधों पर

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यही सच है

1. कानपुर सामने आँगन में फैली धूप सिमटकर दीवारों पर चढ़ गई और कंधे पर बस्ता लटकाए नन्हे-नन्हे बच्चों के झुंड-के-झुंड दिखाई दिए, तो एकाएक ही मुझे समय का आभास हुआ। घंटा

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क़ब्रों का विलाप

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अमीर इंसाफ की गद्दी पर बैठा। उसके दाएं-बाएं देश के विद्वान बैठे थे। उनके चढ़े हुए चेहरों पर किताबों की छाया खेल रही थी। आस-पास सिपाही तलवारें थामे और नेजे उठाये खड़े

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पितृहत्या

खिड़की के कांच पर हल्की खटखटाहट― ―कौन? ―चौकीदार, साहिब। अन्दर से माँ ने झाँका― ―क्या बात है चौकीदार―आज इतनी जल्दी ―खिड़की-दरवाजे बंद कर लीजिए। मेहमानों को बाहर न निकलने दीजिए―शहर में बड़ा

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बदन की ख़ुशबू

कमरे की नीम-तारीक फ़िज़ा में ऐसा महसूस हुआ जैसे एक मौहूम साया आहिस्ता-आहिस्ता दबे-पाँव छम्मन मियाँ की मसहरी की तरफ़ बढ़ रहा है। साये का रुख़ छम्मन मियाँ की मसहरी की तरफ़

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यह कहानी नहीं

पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता, तो घर की दीवारें बन सकता था। पर बना नहीं। वह धरती पर फैल गया,

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लाजवंती

‘हथ लायाँ कुमलान नी लाजवन्ती दे बूटे।’ (ए सखि ये लाजवंती के पौधे हैं, हाथ लगाते ही कुम्हला जाते हैं.) (पंजाबी गीत) बटवारा हुआ और बेशुमार ज़ख़्मी लोगों ने उठ कर अपने

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ठंडा गोश्त

ईशर सिंह जूंही होटल के कमरे में दाख़िल हुआ, कुलवंत कौर पलंग पर से उठी। अपनी तेज़ तेज़ आँखों से उसकी तरफ़ घूर के देखा और दरवाज़े की चटख़्नी बंद कर दी।

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मंटो की पाँच लघु कथाएँ

घाटे का सौदा दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे ख़रीद लिया. रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा,‘‘तुम्हारा नाम क्या

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पुराने ख़ुदा

मथुरा के एक तरफ़ जमुना है और तीन तरफ़ मंदिर, इस हुदूद–ए–अर्बआ में नाई, हलवाई, पांडे, पुजारी और होटल वाले बस्ते हैं. जमुना अपना रुख़ बदलती रहती है. नए–नए आलीशान मंदिर भी तामीर

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