नवनीत शर्मा की ग़ज़लें

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ग़ज़ल : नवनीत शर्मा की

1.

मेरा दुश्‍मन मेरे अंदर से उभर आया है
मेरा साया ही मुझे ग़ैर नज़र आया है

इश्क़ में सर भी झुका और अना भी डूबी
ओखली झूम के नाची है कि सर आया है

हम ग़रीबों का लहू पी के यही होना था
ज़िंदगी ! देख तेरा रंग निख़र आया है

हम निपट लेते जो कश्‍ती ही भंवर में आती
अब कहाँ जाएँ कि कश्‍ती में भंवर आया है

2.

कभी ये शहर का मंज़र उदास करता है
रहें जो घर में तो फिर घर उदास करता है

ये एक रीढ़ हमें रोकती है झुकने से
ये एक झुकता हुआ सर उदास करता है

हमेशा हंस के मिलेगा मगर यकीन करो
सियासतों का पयम्बर उदास करता है

मैं चाहता हूँ मेरी ख़ुशी मिले सबको
यही उसूल तो अक्सर उदास करता है

गिला नहीं है हमें कोई नाउम्मीदी से
हमें ये आस का लश्कर उदास करता है

हवा में तैरती चिड़िया पे नाज़ है मुझको
ज़मीं पे गिरता हुआ पर उदास करता है

बुआई खाबों की रोज़ाना करता रहता हूँ
दिल ऐसा रकबा है बंजर, उदास करता है

उसी से मिलने की उठती है क्यों तलब ‘नवनीत’
वो एक शख्स जो मिल कर उदास करता है

3.

चश्मा बहता हुआ दरिया भी तो हो सकता है
कद मेरा आपसे ऊंचा भी तो हो सकता है

आपने ख़ुश्क बताया है मेरी आँखों को
ये किसी झील पे पहरा भी तो हो सकता है

सर्द तन्हाई में आवाज़ की किरणें तेरी
डूबते के लिए तिनका भी तो हो सकता है

मोहतरिम आपने मरहम तो दिया है लेकिन
ज़ख्म अल्फ़ाज़ का गहरा भी तो हो सकता है

ईंट के बदले में पत्थर नहीं मारा जिसने
कोई तहज़ीब का मारा भी तो हो सकता है

नवनीत शर्मा

नवनीत शर्मा पालमपुर, हिमाचल से हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे navneet.sharma35@gmail.com पे बात की जा सकती है।

नवनीत शर्मा पालमपुर, हिमाचल से हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे navneet.sharma35@gmail.com पे बात की जा सकती है।

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