अजीब बात

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कविता : अजीब बात

जगहें खत्म हो जाती हैं
जब हमारी वहॉं जाने की इच्छाएँ
ख़त्म हो जाती हैं
लेकिन जिनकी इच्छाएँ ख़त्म हो जाती हैं
वे ऐसी जगहों में बदल जाते हैं
जहॉं कोई आना नहीं चाहता

कहते हैं रास्ता भी एक जगह होता है
जिस पर ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं लोग
और रास्ते पॉंवों से ही निकलते हैं
पॉंव शायद इसीलिए पूजे जाते हैं
हाथों को पूजने की कोई परम्परा नहीं
हमारी संस्कृति में
ये कितनी अजीब बात है।

नरेश सक्सेना

हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि नरेश सक्सेना का जन्म 16 जनवरी 1939 को मध्य-प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। सीधी भाषा में उन्होंने अपनी कविताएं कहीं हैं और वैज्ञानिक तथ्यों का विलक्षण प्रयोग काव्य के माध्यम से किया है। उन्होंने टेलीविजन और रंगमंच के लिए भी लेखन किया है। निर्देशन के लिए उन्हें 1992 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि नरेश सक्सेना का जन्म 16 जनवरी 1939 को मध्य-प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। सीधी भाषा में उन्होंने अपनी कविताएं कहीं हैं और वैज्ञानिक तथ्यों का विलक्षण प्रयोग काव्य के माध्यम से किया है। उन्होंने टेलीविजन और रंगमंच के लिए भी लेखन किया है। निर्देशन के लिए उन्हें 1992 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

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