एक बार कहो तुम मेरी हो

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नज़्म : एक बार कहो तुम मेरी हो

हम घूम चुके बस्ती बन में
इक आस की फाँस लिए मन में
कोई साजन हो कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन रात अँधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

जब सावन बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यूँ गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोके में
तुम कब तक दूर झरोके में
कब दीद से दिल को सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

क्या झगड़ा सूद ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

शेर मुहम्मद खान जिसे उनके कलम नाम इब्न-ए-इंशा (1927-1978) से बेहतर जाना जाता है, एक इंडो-पाकिस्तानी उर्दू कवि, हास्यकार, यात्रा-वृत्तांत लेखक और अखबार के स्तंभकार थे। उनकी कविता के साथ, उन्हें उर्दू के सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकारों में से एक माना जाता था।

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