तीन सौ रामायण : पाँच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार

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कितनी प्रकार की रामायण? तीन सौ? तीन हजार? कुछ रामायणों के अन्त में कभी-कभी एक प्रश्न पूछा जाता है कि यहाँ कितनी प्रकार की रामायण सामने आई हैं? और यहाँ कुछ कथाएँ हैं जो इसका उत्तर देती हैं। ऐसी ही एक कथा है –

एक दिन राम जब अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे, उनकी अँगूठी गिर पड़ी। जब अंगूठी ने धरती को स्पर्श किया तब वहाँ एक छिद्र बन गया और अँगूठी उसमें खो गई। वह गायब हो चुकी थी। जब ऐसा हुआ, राम के विश्वस्त प्रधान सेवक हनुमान उनके चरणों के पास ही बैठे हुए थे। राम ने हनुमान से कहा, “देखो, मेरी अँगूठी खो गई है, इसे ढूँढ़ लाओ।”

हनुमान तो किसी भी छिद्र में प्रवेश कर सकते थे, वह कितना भी सूक्ष्म क्यों न हो। उनमें सूक्ष्म में सूक्ष्मतम तथा बृहद् में बृहत्तम बन जाने की शक्ति थी। उन्होंने सूक्ष्म रूप धारण किया और छिद्र के भीतर चले गए।

वे छिद्र के भीतर चलते ही गए, चलते ही गए और अचानक पाताल लोक में गिर पड़े। वहाँ औरतें बैठी हुई थीं। उन्होंने कहा, देखो एक छोटा बन्दर। यह ऊपर से गिर पड़ा है। फिर उन्होंने हनुमान को पकड़ा और एक थाली में रख दिया। प्रेतों का राजा जो पाताललोक में रहता है, जानवरों को खाना पसन्द करता है। तो राजा के रात्रिभोज के भाग के रूप में सब्जियों के साथ हनुमान को भी भोजन के रूप में राजा के पास भेजा गया। थाली पर बैठे हुए हनुमान सोच रहे थे कि अब क्या करना चाहिए।

जब पाताल लोक में यह सब हो रहा था राम ऊपर पृथ्वी पर अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे। उसी समय ऋषि वशिष्ठ तथा भगवान ब्रह्मा उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने राम से कहा, “हम आपसे एकान्त में बात करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि जो कुछ हम कहें उसे और कोई न सुन पाए और न ही इस वार्तालाप में कोई बाधा पहुँचाए। क्या आप सहमत हैं?”

“ठीक है।” राम ने कहा, “हम बात कर सकते हैं।”

फिर उन्होंने कहा, “एक नियम बनाया जाए। यदि कोई हमारी बातचीत के दौरान यहाँ पहुँच जाता है तो उसका सर काट दिया जाएगा।”

“ऐसा ही होगा।” राम ने कहा।

द्वाररक्षक के रूप में सर्वाधिक विश्वसनीय व्यक्ति कौन हो सकता है? हनुमान तो अँगूठी लाने के लिए भीतर गए हुए थे। राम लक्ष्मण से अधिक और किसी पर विश्वास नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने लक्ष्मण को द्वार पर खड़े रहने को कहा।

“किसी को अन्दर न आने देना।” उन्होंने आदेश दिया।

लक्ष्मण द्वार पर खड़े थे कि वहाँ ऋषि विश्वामित्र आ पहुँचे और उन्होंने कहा, “मुझे राम से फौरन मिलना है। यह अपरिहार्य है। बताओ, राम कहाँ हैं?”

लक्ष्मण ने कहा, “आप अभी अन्दर नहीं जाएँ। वे कुछ लोगों से बातचीत कर रहे हैं जो महत्त्वपूर्ण है।”

विश्वामित्र ने कहा, “ऐसा क्या है जो राम मुझसे छुपाएँ? मुझे अन्दर जाना ही है।”

लक्ष्मण ने कहा, “मुझे आपको अंदर जाने देने के लिए उनकी अनुमति लेनी होगी।”

विश्वामित्र ने कहा, “अन्दर जाओ और पूछकर आओ।” लक्ष्मण ने कहा, “जब तक राम बाहर नहीं आ जाते मैं भीतर नहीं जा सकता। आपको प्रतीक्षा करनी होगी।”

विश्वामित्र ने कहा, “यदि तुम भीतर जाकर मेरी उपस्थिति की सूचना नहीं देते तो मैं अपने शाप से सम्पूर्ण अयोध्या साम्राज्य को भस्म कर दूंगा।”

लक्ष्मण ने सोचा, “यदि मैं अभी भीतर जाता हूँ तो मुझे मरना पड़ेगा, किन्तु अगर नहीं जाता हूँ तो यह क्रोधी व्यक्ति सम्पूर्ण साम्राज्य को भस्म कर देगा। समस्त कर्ता, समस्त वस्तुएँ जो यहाँ रहती हैं मारी जाएंगी। इससे बेहतर यह है कि मुझे अकेला ही मर जाना चाहिए।” यह सोचकर लक्ष्मण भीतर चले गए।

राम ने उनसे पूछा, “क्या बात है?” लक्ष्मण ने कहा, “विश्वामित्र आए हैं।” “उन्हें भीतर भेज दो।”

फिर विश्वामित्र अन्दर आए। जो गोपनीय वार्ता हो रही थी वह पहले ही समाप्त हो चुकी थी। ब्रह्मा और वशिष्ठ राम से यह कहने आए थे, “मनुष्य लोक में आपका कार्य सम्पन्न हो चुका है। राम के रूप में आपके अवतार का अब पटाक्षेप हो ही जाना चाहिए। अतः इस शरीर का त्याग करिए और ऊपर आकर पुनः देवताओं में शामिल हो जाइए।”

लक्ष्मण ने राम से कहा, “भ्राता, आपको मेरा सर काट देना चाहिए।”

राम ने पूछा, “क्यों? हमें और अधिक बात करनी ही नहीं थी। कुछ भी शेष नहीं बचा था तो मुझे क्यों तुम्हारा सर काट देना चाहिए?”

लक्ष्मण ने राम से कहा, “आप ऐसा नहीं कर सकते। आप मुझे इसलिए नहीं क्षमा कर सकते कि मैं आपका भाई हूँ। यह राम के नाम पर कलंक होगा। आपने तो अपनी पत्नी को भी क्षमा नहीं किया था। उन्हें वन भेज दिया था। मुझे निश्चय ही दंड मिलना चाहिए। मुझे जाना ही होगा।”

लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे। वही शेषनाग जिस पर विष्णु शयन करते हैं। मनुष्य के रूप में उनका समय भी समाप्त हो चुका था। वह सीधे सरयू नदी की ओर चले गए और बहती हुई जल की धारा में विलीन हो गए।

जब लक्ष्मण ने अपने शरीर का परित्याग कर दिया, तब राम ने अपने सभी अनुगामियों विभीषण, सुग्रीव तथा अन्य को बुलाया और अपने जुड़वाँ पुत्रों, लव तथा कुश के राज्यारोहण की व्यवस्था की। इसके बाद राम भी सरयू नदी में प्रवेश कर गए।

जब पृथ्वी पर यह सब हो रहा था तब हनुमान पाताल लोक में थे। अन्ततः जब हनुमान को प्रेतों के राजा के पास लाया गया तब भी वे राम का नाम जप रहे थे ‘राम राम राम

तब प्रेतों के राजा ने पूछा, “तुम कौन हो?” “हनुमान।” “हनुमान, तुम यहाँ क्यों आए हो?”

तब हनुमान ने कहा, “राम की अंगूठी छिद्र में गिर गई थी। मैं उसे लेने आया हूँ।”

राजा ने चारों ओर देखा और हनुमान को एक थाली दिखाई। इस थाली पर हजारों अंगूठियाँ थीं। वे सभी राम की ही अँगूठियाँ थीं। राजा ने थाली हनुमान के सामने प्रस्तुत की और कहा तुम अपने राम की अंगूठी इसमें से पहचान लो और ले जाओ। वे सबकी सब ठीक एक जैसी थीं।

हनुमान ने सिर हिलाते हुए कहा, “मैं नहीं जानता मेरे राम की अँगूठी इनमें से कौन सी है।”

प्रेतों के राजा ने कहा, “इस थाली में जितनी अंगूठियाँ हैं उतने ही राम अब तक हुए हैं। तुम जब पृथ्वी पर लौटोगे वहाँ राम को नहीं पाओगे। राम का यह अवतार अब समाप्त हो चुका है। जब भी राम का अवतार समाप्त होने को होता है, उनकी अंगूठी नीचे गिर जाती है। मैं उन्हें उठाकर रख लेता हूँ। अब तुम जा सकते हो।” फिर हनुमान वहाँ से लौट आए।

यह कथा प्रायः यह बताने के लिए कही जाती है कि ऐसे प्रत्येक राम के लिए एक अलग रामायण है। पिछले पच्चीस सौ वर्षों से अधिक समय से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में रामायणों की संख्या और उनके प्रभाव का दायरा हैरान करने वाला है। पश्चिमी भाषाओं की बात ही छोड़ दीजिए, अन्नामी, बाली, कम्बोडियाई, चीनी, जावा, खोटानी, लाओसी, मलेशियाई, सिंहली, थाई, तिब्बती, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, उडिया, प्राकृत, संस्कृत, संथाली, तमिल, तेलुगू, राम की कथा जितनी भाषाओं में मिलती है, उनकी सूची दम फुला देने वाली है। सदियों से रामकथा के एकाधिक वर्णन इनमें से कुछ भाषाओं में मिलते रहे हैं। सिर्फ संस्कृत में लगभग पच्चीस या सम्भवतः उससे भी अधिक ऐसे वर्णन उपस्थित हैं। वे महाकाव्य, काव्य, पुराण अथवा पुरातन मिथकीय कथा की विधाओं में हैं।

यदि हम इसमें नाटकों, नृत्य नाटकों, शास्त्रीय तथा लोक परम्पराओं के अन्य प्रदर्शनों को भी शामिल कर दें तब रामायणों की संख्या और भी अधिक बढ़ जाती है। इस सूची में मूर्तिकला, नक्काशी, मुखौटा नाटक, कठपुतली नाटक और छाया नाटक जैसी अभिव्यक्तियों को भी शामिल करना आवश्यक है जो दक्षिण पूर्व एशियाई संस्कृतियों में रची बसी हुई हैं।

रामायण के अध्येता कामिल बुल्के ने रामायण के तीन सौ आख्यानों की चर्चा की है। यह आश्चर्य नहीं है कि काफी पहले 14वीं सदी में कन्नड़ कवि कुमार व्यास ने महाभारत लिखना ही उचित समझा क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि एक दिव्य विशाल सर्प है जो रामायण वाचकों के भार तले कराहती पृथ्वी की रक्षा करता है।

मैंने इस लेख को लिखने के लिए विभिन्न पुराने अनुवादकों और विद्वानों के लेखों तथा उनके तथ्यों की मदद ली है। मैंने स्वयं के लिए तथा अन्य व्यक्तियों के लिए भी इतना ही निर्धारित किया है कि अन्ततः यह समझने का प्रयास किया जाए कि किस तरह विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं तथा धार्मिक परम्पराओं में एक ही कथा के ऐसे सैकड़ों वर्णन एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, वहाँ क्या-क्या अनूदित होता है और क्या-क्या प्रतिरोपित होता है अथवा प्रतिस्थानान्तरित होता है।

ए. के. रामानुजन
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ए.के. रामानुजन (1929-1993) का जन्म मैसूर के एक कन्नड़-भाषी तमिल परिवार में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी की शिक्षा मैसूर विश्वविद्यालय और इंडियाना यूनिवर्सिटी में ली। यूनिवर्सिटी ऑव शिकागो में विलियम ई. कोल्विन प्रोफेसर के रूप में काम करते हुए उनकी अकादमिक रुचियाँ अधिकाधिक अंतरानुशासनिक होती गईं। उन्होंने क्लासिकल तमिल और मध्यकालीन कन्नड़ से अनुवाद किये। उन्होंने कन्नड़ में प्रयोगशील कविता (होक्कुलाल्ली हुविल्ला, कुंतोबिल्ले, आदि) लिखी, भारत भर से लोकगाथाएँ एकत्र की, अंग्रेजी से कन्नड़ में और कन्नड़ से अंग्रेजी में कथा-साहित्य का अनुवाद किया और खुद कन्नड़ में एक उपन्यासिका लिखी। साहित्यिक उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले।

ए.के. रामानुजन (1929-1993) का जन्म मैसूर के एक कन्नड़-भाषी तमिल परिवार में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी की शिक्षा मैसूर विश्वविद्यालय और इंडियाना यूनिवर्सिटी में ली। यूनिवर्सिटी ऑव शिकागो में विलियम ई. कोल्विन प्रोफेसर के रूप में काम करते हुए उनकी अकादमिक रुचियाँ अधिकाधिक अंतरानुशासनिक होती गईं। उन्होंने क्लासिकल तमिल और मध्यकालीन कन्नड़ से अनुवाद किये। उन्होंने कन्नड़ में प्रयोगशील कविता (होक्कुलाल्ली हुविल्ला, कुंतोबिल्ले, आदि) लिखी, भारत भर से लोकगाथाएँ एकत्र की, अंग्रेजी से कन्नड़ में और कन्नड़ से अंग्रेजी में कथा-साहित्य का अनुवाद किया और खुद कन्नड़ में एक उपन्यासिका लिखी। साहित्यिक उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले।

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