शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं आपके रस्ते हैं आसाँ, आपकी मंजिल क़रीब ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं

राजेश रेड्डी
राजेश रेड्डी (जन्म-1952) मौजूदा दौर के ख्यातिलब्ध शायर हैं. आपने राजस्थान पत्रिका का संपादन भी किया है. आपको डॉ. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है.