लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी

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इस उम्र के बाद उस को देखा!

आँखों में सवाल थे हज़ारों
होंटों पे मगर वही तबस्सुम!
चेहरे पे लिखी हुई उदासी
लहजे में मगर बला का ठहराओ
आवाज़ में गूँजती जुदाई
बाँहें थीं मगर विसाल-ए-सामाँ!

सिमटी हुई उस के बाज़ुओं में
ता-देर मैं सोचती रही थी
किस अब्र-ए-गुरेज़-पा की ख़ातिर
मैं कैसे शजर से कट गई थी
किस छाँव को तर्क कर दिया था

मैं उस के गले लगी हुई थी
वो पोंछ रहा था मिरे आँसू
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी!

परवीन शाकिर
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सैयदा परवीन शाकिर (1952 – 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं।

सैयदा परवीन शाकिर (1952 – 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं।

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