ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के

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ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के,
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के।

कह रही है झोपड़ी औ’ पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के।

बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के।

कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के।

हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,
बेड़ियाँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के।

दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब,
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के।

एकता से बल मिला है झोपड़ी की साँस को,
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के।

तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गाँव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गाँव में।

देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के।

बल्ली सिंह चीमा
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बल्ली सिंह चीमा (जन्म 2 सितंबर 1952) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि हैं और वर्तमान में आम आदमी पार्टी के राजनेता हैं। चीमा जी को 'देवभूमि रतन सम्मान' (2004), 'कुमाऊँ गौरव सम्मान' (2005), 'पर्वतीय शिरोमणि सम्मान' (2006), 'कविता कोश सम्मान' (2011) से सम्मानित किया गया है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जटिल चुनौती को पूरी रचनात्मक सक्रियता से स्वीकार करने वाले बल्ली सिंह चीमा को 'गंगाशरण सिंह पुरस्कार' से सम्मानित करके 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' ने भी स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया है।

बल्ली सिंह चीमा (जन्म 2 सितंबर 1952) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि हैं और वर्तमान में आम आदमी पार्टी के राजनेता हैं। चीमा जी को 'देवभूमि रतन सम्मान' (2004), 'कुमाऊँ गौरव सम्मान' (2005), 'पर्वतीय शिरोमणि सम्मान' (2006), 'कविता कोश सम्मान' (2011) से सम्मानित किया गया है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जटिल चुनौती को पूरी रचनात्मक सक्रियता से स्वीकार करने वाले बल्ली सिंह चीमा को 'गंगाशरण सिंह पुरस्कार' से सम्मानित करके 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' ने भी स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया है।

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