अजय ‘दुर्जेय’ की कविताएँ

1 min read
अजय 'दुर्जेय' की कविताएँ |

1.

रोने के तमाम
हृदय-विदारक कारणों से इतर
क्या तुमने कभी सोचा है कि न रो पाना भी
रोने का एक कारण हो सकता है?

2.

समुद्र को चुल्लू में रखकर पी जाना
बहुत आसान है अगस्त्य!
जो कर सको तो
डबडबाई आँखों में आये अश्रु को
आँखों से पीकर दिखाओ।

3.

ज़रा सी आहट पाते ही
झट से निकल आते हैं मेरे आँसू
फिर भी मेरे गलनांक-बिंदु का कम होना
मुझे करुणावान नहीं स्त्री बना देता है

मैं स्त्री बनकर ख़ुश हूँ
पर पुरुषों की नासमझी पर रोता हूँ।

4.

रोने का अर्थ
आँखों का नम होना भर ही नहीं है

कभी-कभी हमारे आँसू इतने शुष्क होते हैं
कि हम मौन उगलते हैं

अजय ‘दुर्जेय’
+ posts

अजय ‘दुर्जेय’ कन्नौज, उत्तर प्रदेश से हैं और इन दिनों बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के छात्र हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे durgeayajay209731@gmail.com पे बात की जा सकती है।

अजय ‘दुर्जेय’ कन्नौज, उत्तर प्रदेश से हैं और इन दिनों बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के छात्र हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे durgeayajay209731@gmail.com पे बात की जा सकती है।

नवीनतम

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो

कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन

भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से