नदी पर कविता लिखने के लिए
कवि को नाव होना होता है
आग पर लिखने के लिए राख
पानी पर पानी बन कर ही लिखा जा सकता है
धरती पर लिखने के लिए बीज बनना ज़रूरी है
आकाश पर कविता लिखने के लिए
जो पक्षी बने उनके पंख जल गए
जो तितली बने वे असफल रहे
जो हवा बने उनकी कविता कभी ख़त्म ही नहीं हुई
आकाश पर कविता लिखने के लिए
एक स्त्री की स्वप्निल आँख होना होता है
मृत्यु पर लिखने के लिए मरना ज़रूरी नहीं
यह बात कई बार मरने के बाद समझ आती है
जीवन पर कविता लिखी ही नहीं जा सकती
जीवन बीत जाता है यह बात समझने में
प्रेम पर कविता लिखना व्यर्थ है
प्रेम सब कुछ है
ईश्वर भी और सत्य भी
तीर भी और हृदय भी
मैल भी, साबुन भी, साबुन का झाग भी
आत्मा भी, देह भी, देह पर दाग भी
ख़ुद पर कविता लिखते हुए
अतीत में डूब जाता है कवि
अतीत पर कविता लिखते हुए टूट जाता है कवि
भविष्य पर कविता लिखना कवि के प्राण भी ले सकता है
वर्तमान पर कविता लिखना कवि को पागल कर सकता है
प्रेमिकाओं पर कविताएँ लिखते हुए महकता है कवि
कभी जलती हुई लाश सा
कभी चंदन की लकड़ी सा
कभी किसी आदिम स्वप्न के जलने के भी गंध आती है
पिता पर लिखना किसी बूढ़े पर्वत के बगल शांति से बैठ जाना है
माँ पर लिखना सूर्य पर लिखना है
मुझसे पहले मेरा पूर्वज कवि ऐसा ही कुछ कह गया है
कविता पर कविता लिखना सरयू में राम की तरह डूब जाना है
और मौन पर कविता लिखना कविता में हृदय कहना है
कवि एक कविता के लिए न जाने क्या क्या बनता है
कविता कवि को कविता बना कर छोड़ती है।
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अनुराग अनंत
अनुराग अनंत मूलतः इलाहाबाद से हैं और इन दिनों लखनऊ में रहते हैं। आप इन दिनों अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीएचडी कर रहे हैं। आपसे anantmediagroup@gmail.com पे बात की जा सकती है।