किसी एक रोज़

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मंजुला बिष्ट

कलम छूटने से पूर्व
कवि को चुन लेना चाहिए
एक उत्तराधिकारी ;
सौंप देनी चाहिए अपनी अधूरी कविताएँ
जैसे हम घोषित करते हैं
वसीयत में अपने मनपसंद वारिस का नाम

अकाल-गंध पर
किसान को लोरियाँ सुनानी चाहिए
समीपस्थ जंगलात के सभी ठूंठों को ;
और भय मुक्त हो जाना चाहिए
उसके साथियों को भी
क्योंकि किसान ने बचाया है
उन्हें भी ठूँठ में बदलने से

दुनियादारी सिखाते हुए
माँओं को बेटियों के साथ
साझे करने चाहिए ;
एक अदद प्रेमिका होने के राज
और प्रेम लौटाती स्त्री का दुस्साहस भी
ताकि प्रेम से बावस्ता होने पर
उन्हें शील नागरिकता छिन जाने का कोई भय न हो

सुनी जानी चाहिए
अंजुरी भर-भरके
किसी जलस्रोत के भी सुखया-दुःखया
आख़िर,हमने भी अपने भय और तृप्तियाँ
सर्वाधिक इन्हीं के पास कभी अकेले
तो कभी दुकेले बैठकर बाँटें ही हैं ;
जल की स्मृतियों में हमारी बुदबुदाहटों की वे अनुगूँजें हैं
जहाँ अभी भी
हमारे मनुष्य बने रहने के एकाध कारण बचे हुए हैं

हमें चखनी चाहिए
उन सभी बदलावों की तीख़ी फाँकें
जहाँ हम पीठ पीछे धीरे-धीरे
सम्बोधन से ज़्यादा विशेषणों में पुकारे जाने लगते हैं ;
जैसे–ढोंगी,कुटिल,मौकापरस्त,स्वार्थी वगैरह..
और हाँ!
समझदार,गरीब,भिखारी व दुःखी भी
वह भी…
लहूलुहान किये जाने से ठीक-ठीक पहले

मंजुला बिष्ट
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मंजुला बिष्ट, उत्तराखंड से हैं और आपकी रचनाएँ ही आपकी पहचान हैं। आपका काव्य संग्रह ‘खाँटी ही भली’ इन दिनों अपने पाठकों के बीच है। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे bistmanjula123@gmail पे बात की जा सकती है।

मंजुला बिष्ट, उत्तराखंड से हैं और आपकी रचनाएँ ही आपकी पहचान हैं। आपका काव्य संग्रह ‘खाँटी ही भली’ इन दिनों अपने पाठकों के बीच है। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे bistmanjula123@gmail पे बात की जा सकती है।

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