चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है उसे बड़ा अचरज होता है: इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर निकला करते हैं। चंपा सुंदर की लड़की है सुंदर ग्वाला है: गायें भैंसें रखता है चंपा चौपायों को लेकर चरवाही करने जाती है चंपा अच्छी है चंचल है न ट ख ट भी है कभी-कभी ऊधम करती है कभी-कभी वह कलम चुरा देती है जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ पाता हूँ - अब कागज गायब परेशान फिर हो जाता हूँ चंपा कहती है: तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर क्या यह काम बहुत अच्छा है यह सुनकर मैं हँस देता हूँ फिर चंपा चुप हो जाती है उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि चंपा, तुम भी पढ़ लो हारे गाढ़े काम सरेगा गांधी बाबा की इच्छा है - सब जन पढ़ना लिखना सीखें चंपा ने यह कहा कि मैं तो नहीं पढ़ूँगी तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे मैं तो नहीं पढ़ूँगी मैंने कहा चंपा, पढ़ लेना अच्छा है ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी, कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता बड़ी दूर है वह कलकत्ता कैसे उसे सँदेसा दोगी कैसे उसके पत्र पढ़ोगी चंपा पढ़ लेना अच्छा है! चंपा बोली: तुम कितने झूठे हो, देखा, हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो मैं तो ब्याह कभी न करूँगी और कहीं जो ब्याह हो गया तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूँगी कलकत्ता में कभी न जाने दूँगी कलकत्ते पर बजर गिरे।
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त्रिलोचन
त्रिलोचन (20/08/1917 – 09/12/2007) हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं. वे आधुनिक हिंदी कविता की ‘प्रगतिशील त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे. इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह रहे. आपको 1982 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला.