एक बात और

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रेमंड कार्वर की कहानी

मैक्सीन — एल.डी की पत्नी — जब काम से घर लौटी तो उसने पाया एल.डी किचन टेबल पर अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी रे से बहस कर रहा है. बहस करते हुए वह रे को लगातार अपमानित कर रहा था. हमेशा की तरह उसने आज भी पी रखी थी. वो अपना कोट उतार कर पर्स को कहीं रखती, इतना वक्त भी उसे नहीं मिला. उसने अपना पर्स लटकाए लटकाए व बिना कोट उतारे ही फरमान दे डाला कि आज की रात इसी पल वह घर छोड़ कर चला जाए.

“माँ, इन्हें बताओ हमने क्या बात की”, रे ने कहा.

एल.डी गिलास हाथ में लिए लिए मुड़ा और मैक्सीम उसकी ओर घूर कर देखती हुई बोली.

“तुम हमारे झगड़े में मत बोलो क्योंकि कि तुम जानती नहीं हो हम किस विषय पर बात कर रहे हैं — और वैसे भी मैं रे की बचकानी बातों को गंभीरता से नहीं लेता. ये करती ही क्या है दिन भर… बिस्तर पर औंधे पड़ी-पड़ी ज्योतिष की किताब पढ़ती रहती है, बस.”

“पर इस बात का मेरी ज्योतिष से क्या वास्ता?” रे ने कहा, “आप मुझे इस प्रकार अपमानित नहीं कर सकते.”

“जहाँ तक रे का सवाल है वह पिछले कई हफ़्तों से स्कूल नहीं जा रही है. और उसने कहा कोई दूसरा उसे स्कूल जाने के लिए कह भी नहीं सकता.” मैकसीम ने कहा – “यह एक और त्रासदी है.’’

“तुम दोनों अपना मुंह बंद क्यों नहीं रखते?” मैक्सीम ने कहा. “हे भगवान् , मुझे पहले से ही सिरदर्द हो रहा है.”

रे ने कहा – “इनसे कहो’’. “इनसे कहो – ये सब इनके दिमाग की उपज है. जिसको थोड़ी भी समझ है उससे पूछो वो भी इनके बारे में यही कहेगा.”

एल.डी ने कहा – “शुगर डाय़बटीज़ का क्या ? मिर्गी का क्या? क्या दिमाग इसको भी नियंत्रित करता है.”

उसने मैक्सीम की आँखों के ठीक सामने जाम को नाचते हुए पूरा घूँट भरा.

“डायबटीज़ भी.” “ मिर्गी भी .सब कुछ.आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि हमारे शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा दिमाग ही सबसे है.”
उसने अपने लिए एक सिगरेट सुलगाई .

“कैंसर. कैंसर के बारे में ?”- एल.डी ने कहा .

कुछ देर की चुप्पी. एल.डी को लगा उसने अपनी जवान बेटी को बहस में हरा दिया अब वो मैक्सीम की ओर मुख़ातिब हुआ और बोला। उसे पता नहीं बेटी से उसकी बहस किस बात से छिड़ी.

“कैंसर?” रे ने कहा और अपना सिर बड़ी सहजता से हिलाते हुए कहा – “हाँ , हाँ, कैंसर भी दिमाग से ऊपजी बीमारी है.”

“क्या पागलपन है!” यह कहते हुए उसने टेबल पर ज़ोर का मुक्का मारा. इतना जोरदार मुक्का कि टेबल पर रखी ऐश ट्रे उछल कर दूर जा गिरी. गिलास गिर कर लुढकता हुआ उसकी ओर आया. “तुम एकदम पागल हो ? क्या तुम्हें पता है !” “चुप रहो !” मैक्सीम ने कहा.

उसने अपना पर्स मेज पर रखा और कोट के बटन खोलते हुए कहा. उसने एल. डी से कहा “मेरे लिए अब ये बहुत हो चुका. हम दोनों ने ही सोचा बस अब बहुत हो चुका. अब हम तुम्हें नहीं झेल सकती. तुम्हारे बारे में दुनिया जानती है. मैंने इस बारे में बहुत सोचा. मेरा निर्णय यही है तुम घर से तत्काल इसी पल आज की रात ही निकल जाओ. इसी समय निकलो, जाओ!”

एल.डी कहाँ जाता? उसका इरादा कहीं जाने का न था उसने एक बार टेबल में रखे कांच के मर्तबान से उस पार खड़ी मैक्सीम को देखा. वह कांच का मर्तबान जो लंच के बाद से टेबल में ही रखा था उसे उठाया और बड़े ही आक्रामक अंदाज़ में किचेन की खिड़की के बाहर फ़ेंक दिया.

रे अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ी हो गयी . “हे भगवान् ! पूरे पागल हैं.”

वह घबरा कर अपनी माँ के पास जा खड़ी हुई.

मैक्सीम चिल्ला कर बोली पुलिस को बुलाओ यह आदमी कुछ भी कर सकता है. किचेन से बाहर निकलो. वे दोनों एक एक कदम पीछे लेते हुए किचन से बाहर निकलने लगे.

“मैं जा रहा हूँ.” एल.डी ने कहा. “मैं निकल ही रहा हूँ अभी बिलकुल अभी.”

उसने कहा –“मेरे लिए यही ठीक भी है. वैसे भी यहाँ पागल रहते हैं. यह घर नहीं पागलखाना है.इसके बाहर ही जीवन है. यह वास्तव में नरक है रहने लायक जगह ही नहीं है.”

उसने अपने चेहरे पर हवा का एक अहसास महसूस किया जो एक छेद से उसके चेहरे पर आया. उसने कहा वो वही जा रहा है जहाँ से हवा का यह हल्का सा झोका आया है.

“बहुत बढ़िया.” मैकसीम ने समर्थन करते हुए कहा.

“हाँ, हाँ मैं जा ही रह हूँ .” एल.डी ने कहा.

उसने जोर से टेबल पर अपना हाथ मारा और कुर्सी को पीछे धकेलता हुआ उठ खड़ा हुआ.

“तुम लोग अब मुझे कभी देख नहीं पाओगे.” एल.डी ने कहा

“तुमने बहुत सी यादे हमें दी है वो काफी है याद रखने के लिए” मैक्सीम ने कहा.

“ठीक है” – एल.डी ने कहा .

“जाओ ! निकलो भी यहाँ से. ये मेरा घर है मैं इसका किराया दे रही हूँ.”

“जा रहा हूँ. बस जा ही रहा हूँ . मुझे धक्का मत दो .” – एल.डी ने कहा .

“जाओ!” – मैकसीम ने कहा

“मैं इस पागलखाने से जा रहा हूँ .” एल.डी ने कहा

यह कहते हुए वो बेडरूम में गया और अलमारी से एक सूटकेस निकाली. सूटकेस जो चमड़े की नहीं थी, सफ़ेद रंग की थी जिसका ऊपरी पल्ला दुरुस्त भी नहीं था. इस सूटकेस में उसके स्वेटर रखे थे जिसका इस्तेमाल वो अपने कॉलेज ले जाने के लिए करती थी. उसने उस सूटकेस को बिस्तर में पटका और अपनी चड्डीयाँ, अपने पैजामे, अपने पैंट- शर्ट, अपने स्वेटर्स, और अपना पुराना चमड़े का बेल्ट जो ब्रास के बकल का था, अपने मोज़े और भी सामान भर लिए. फिर उसने कुछ पत्रिकाएँ रखी, ऐशट्रे रखी, उसे अपनी और जरूरत की चीज़ें याद आयी वो बाथरूम की तरफ़ बढ़ गया. उसने शेविंग किट उठाई जो उसके हैट के पीछे रखी थी. उसमें रेज़र, शेविंग क्रीम, टेलकम पावडर,अपना डियोडरेंट, अपना टूथब्रश यहाँ तक टूथपेस्ट भी रख लिया. फिर उसने डेंटल फ्लॉस रखा.

उसे लिविंग रूम से दोनों की फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी. उसने मुँह धोया. फिर साबुन और तौलिए को भी अपने शेविंग बैग के अन्दर ठूंस दिया. वहाँ उसके नाख़ून क्लिपर और आइलेशस के कर्लेर भी रखे थे. उसका शेविंग बैग सामान ठुंसा होने के कारण बंद नहीं हो पा रहा था पर ठीक है. उसने अपना कोट पहनते हुए सूटकेस उठाया और लिविंग रूम में आ गया. जैसे ही उसने उसे आते देख अपनी बेटी के कंधों को अपनी बाँह में समेट लिया.

“तो .. बस सब ख़त्म हो गया.” “क्या कहूँ पर हाँ, हमेशा के लिए जा रहा हूँ. अब तुम से कभी नहीं मिलूँगा. रे, तुमसे भी नहीं .” “तुम और तुम्हारी बेवकूफियाँ तुम्हें मुबारक.”

“जाओ”- मैक्सीन ने कहा. उसने रे का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा –“ वैसे भी तुमने इस घर का बहुत सारा सामान की तोड़ – फोड़ की है. जाओ और हमें शांति से जीने दो.”

“याद रखना, तुम्हारे सर में ..” रे ने कहा.

“मैं जा रहा हूँ .” – एल.डी ने कहा. कहीं भी, यहाँ से दूर, इस पागलखाने से दूर.

उसने कहा- “ये सबसे अच्छी बात है.”

उसने एक बार अंतिम बार लिविंग रूम की ओर देखा और एक हाथ से छोड़ दूसरे हाथ से सूटकेस का थामा और बगल में शेविंग बैग को दबाये हुए दरवाज़े की ओर बढ़ गया. फिर रुक कर कहा “मैं तुमसे संपर्क में रहूँगा रे. मैक्सीम तुम भी बेहतर होगा इस पागलखाने से मुक्त हो जाओ।”

“तुमने इसे पागलखाना बना रखा था”, मैक्सीन ने कहा “ये यदि पागलखाना है तो तुम्हारी वजह से।”

उसने सूटकेस नीचे रखा और एक बार फिर उनकी तरफ़ मुख़ातिब हुआ दोनों दो कदम पीछे हटे.

“माँ संभलो” – रे ने कहा

मेक्सीम ने कहा – “मैं इस आदमी से नहीं डरती, बिलकुल भी नहीं डरती.’’

एल.डी ने अपना शेविंग बैग अपनी बगल में दबाया और एक बार फिर नीचे रखा सूटकेस उठा लिया .

उसने कहा – “मुझे सिर्फ एक बात और कहनी है.”

पर फिर वह सोच ही नहीं पाया उसे कौन सी बात कहनी थी.

[अनुवाद – डॉ. श्रद्धा श्रीवास्तव,
कथाकार, अनुवादक और रेडियो के लिए स्क्रिप्ट-लेखन,
सभी पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,
संप्रति : भोपाल में अध्यापन,
आपसे Shraddhakvs@gmail.com पे संपर्क किया जा सकता है.]

रेमंड कार्वर

रेमंड क्लीवी कार्वर जूनियर (25 मई, 1938 - 2 अगस्त, 1988) एक अमेरिकी लघु कहानी लेखक और कवि थे। वह अमेरिका के महानतम लेखकों में से एक माना जाते हैं।

रेमंड क्लीवी कार्वर जूनियर (25 मई, 1938 - 2 अगस्त, 1988) एक अमेरिकी लघु कहानी लेखक और कवि थे। वह अमेरिका के महानतम लेखकों में से एक माना जाते हैं।

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