फ़ारिहा क्या बहुत ज़रूरी है
हर किसी शेरसाज़ को पढ़ना
क्या मेरी शायरी में कम है गुदाज़
क्या किसी दिलगुदाज़ को पढ़ना
यानी मेरे सिवा भी और किसी
शायरे दिलनवाज़ को पढ़ना
क्या किसी और की हो तुम महबूब
क्यूँ किसी फ़न तराज़ को पढ़ना
हद है ख़ुद तुमको भी नहीं आया
अपने क़ुरान–ए–नाज़ को पढ़ना
यानी ख़ुद अपने ही करिश्मों की
दस्तान–ए–दराज़ को पढ़ना
ठीक है गर तुम्हें पसंद नहीं
अपनी रूदादे राज़ को पढ़ना
वाक़ई तुमको चाहिए भी नहीं
मुझ से बे इम्तियाज़ को पढ़ना
क्यूँ तुम्हारी अना क़बूल करे
मुझ से एक बेनियाज़ को पढ़ना
मेरे ग़ुस्से के बाद भी तुमने
नहीं छोड़ा ‘मजाज़’ को पढ़ना

जॉन एलिया
जॉन एलिया उर्दू के एक महान शायर हैं। इनका जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुआ। यह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार हैं। शायद, यानी, गुमान इनके प्रमुख संग्रह हैं इनकी मृत्यु 8 नवंबर 2002 में हुई। जॉन सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हिंदुस्तान व पूरे विश्व में अदब के साथ पढ़े और जाने जाते हैं।