अपनी मंज़िल से जा लगा कोई
अब न देखेगा रास्ता कोई
सूनी–सूनी सी रहगुज़र क्यूँ है
आज गुज़रा न क़ाफ़िला कोई
आज पत्थर उदास बैठे हैं
आज टूटा है आइना कोई
ख़ुशबूऐं आ गयी है दामन में
माजरा है ये ख़्वाब का कोई
बे–ख़ुदी की फ़ज़ा बताती है
होने वाला है ला–पता कोई
रम्ज़–ए–उल्फ़त से हम शनासा हैं
आप दीजे न मशवरा कोई
उस से मिलकर तो ये लगा मुझ को
फिर न हो जाए कर्बला कोई
ये ख़ुदा का निज़ाम है ‘ख़ालिद‘
कोई सुल्तान है गदा कोई

ख़ालिद नदीम बदायूनी
ख़ालिद नदीम बदायूनी बदायूँ शहर के जाने माने शायरों में शुमार हैं। आपसे khalidnadeem812@gmail.com पे बात की जा सकती है।