मंटो की पाँच लघु कथाएँ

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कहानी : मंटो की पाँच लघु कथाएँ

घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे ख़रीद लिया. रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा,‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्न गया. ‘‘हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो!’’ लड़की ने जवाब दिया,‘‘उसने झूठ बोला था.’’ यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा,‘‘उस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोखा किया है. हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी. चलो, वापस कर आएं!’’

करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए.
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.
एक आदमी को बहुत दिक़्क़त पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियां थीं, जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूं-तूं रात के अंधेरे में पास वाले कुएं में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए. कुएं में रस्सियां डाली गईं. जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया. लेकिन वह चंद घंटों के बाद मर गया.
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएं में से पानी निकाला तो वह मीठा था.
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.

बेख़बरी का फ़ायदा  
लबलबी दबी-पिस्तौल से झुंझलाकर गोली बाहर निकली.
खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया.
लबलबी थोड़ी देर बाद फिर दबी-दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली.
सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुंह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा.
लबलबी तीसरी बार दबी-निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई.
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.
पांचवीं और छठीं गोलियां बेकार गईं. कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी.
गोलियां चलाने वाला भिन्ना गया.
दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया.
गोलियां चलानेवाले ने पिस्तौल का मुंह उसकी तरफ मोड़ा.
उसके साथी ने कहा,‘‘यह क्या करते हो?’’
गोलियां चलानेवाले ने पूछा,‘‘क्यों?’’
‘‘गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!’’
‘‘तुम ख़ामोश रहो. इतने-से बच्चे को क्या मालूम?’’

जूता
हजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा. लाठियां बरसाई गईं. ईंटें और पत्थर फेंके गए. एक ने मुंह पर तारकोल मल दिया. दूसरे ने बहुत-से पुराने जूते जमा किए और उनका हार बनाकर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा, मगर पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं. जूतों का हार पहनाने वाला ज़ख़्मी हो गया. चुनांचे मरहम-पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम अस्पताल भेज दिया गया.

मुनासिब कार्रवाई
जब हमला हुआ तो मुहल्ले में से अल्पसंख्यकों के कुछ आदमी तो क़त्ल हो गए, जो बाक़ी थे, जान बचाकर भाग निकले. एक आदमी और उसकी बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छिप गए.
दो दिन और दो रातें छिपे हुए मियां-बीवी ने क़ातिलों के आने की संभावना में गुज़ार दीं, मगर कोई न आया. दो दिन और गुज़र गए. मौत का डर कम होने लगा. भूख और प्यास ने ज़्यादा सताना शुरू किया.
चार दिन और बीत गए. मियां-बीवी को ज़िंदगी और मौत से कोई दिलचस्पी न रही. दोनों छिपे स्थान से बाहर निकल आए. खाविंद ने बड़ी दबंग आवाज़ में लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जह (आकर्षित) किया और कहा,‘‘हम दोनों अपने आप को तुम्हारे हवाले करते हैं. हमें मार डालो.’’
जिनको मुतवज्जह किया गया था, वे सोच में पड़ गए,‘‘हमारे मज़हब में तो जीव-हत्या पाप है.’’
वे सब जैनी थे, लेकिन उन्होंने आपस में मशवरा किया और मियां-बीवी को मुनासिब कार्रवाई के लिए दूसरे मुहल्ले के आदमियों के सुपुर्द कर दिया.

मंटो

सआदत हसन मंटो (11/05/1912 – 18/01/1955) उर्दू के मशहूर अफ़सानानिगार और प्रगतिशील लेखकों में शुमार थे. उन्हें उनकी प्रमुख रचनायें ‘टोबा टेक सिंह’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘काली सलवार’ आदि के लिए याद किया जाता है.

सआदत हसन मंटो (11/05/1912 – 18/01/1955) उर्दू के मशहूर अफ़सानानिगार और प्रगतिशील लेखकों में शुमार थे. उन्हें उनकी प्रमुख रचनायें ‘टोबा टेक सिंह’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘काली सलवार’ आदि के लिए याद किया जाता है.

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