1. प्रेम लिपि
तुम्हारी दैहिक शुचिता को
दैविकता मानकर;
क्षण-क्षण ठगा जाना,
स्वीकार किया मैंने!
मैं हारती चली गई ;
तुम जीतते गए हर बार!
सर्वस्व अर्पण, समर्पण;
मेरे प्रेम की लिपि थी..
औऱ दुर्भाग्यवश ;
तुम ‘अपढ़’ निकले!
2. विद्रोही औरतें
कौन होगी इतिहास की
पहली विद्रोही औरत??
आँखों पर पट्टी लपेटकर,
जो बनी न होगी ‘गांधारी’
जिसने सुनी होगी हर व्यथा चीत्कार,
किया होगा तथ्यान्वेशित न्याय
देखकर सारे गुण दोष अपराध!
अग्निपरीक्षा के कंटकाकीर्ण पथ को,
जिसने किया होगा अवरूद्ध!
या उर्मिला की विपरीत जिसने,
स्वीकारा न होगा पति का विरह प्रवास?
अग्नि का ग्रास न बनकर
नकारी होगी जिसने सती प्रथा
या अवमानना के बाद भी
अडिग होगा जिसमें अम्बा सा स्वाभिमान!
हृदयप्रमार्थी न होकर जिसने दिया हो
धर्म युध्द में शिखण्डिनी सा योगदान?
बेवा कहकर नवाज़े गए श्वेत रंग की बजाय..
जिसने पहनी होगी रंगीन साड़ी?
या लगाई होगी होठों पर थोड़ी सी लाली??
पुरुषों की तरह जिसने दी होंगी गालियां
या पनेरी की दुकान पर खरीदा होगा पान??
अग्नि को साक्षी मानकर,
जिसने लिए होंगे फिर से सात फेरे,
और किया होगा पुनर्विवाह??
दहेज की आग में,
जिसने झोंका न होगा खुद को
और अन्याय के विरुद्ध जिसने
दर्ज कराई होगी पहली एफआईआर?
वही होगी इतिहास की पहली विद्रोही औरत
जिसे पता होगा,
दकियानूसी परम्परा से द्वंद्व में,
गिराने नहीं पड़ते परमाणु बम
ज़रूरत नहीं होती, किसी तोप या मशाल की
भीड़ की, या हृदयविदारक संग्राम की!
3. चंचल नदी
तुम्हें याद है??
घूमती हुई वो खानाबदोश स्त्री …
मुक्त स्वच्छन्द आल्हाद से भरी
गाती हुई नाचती हुई…!
वो इठलाती, बलखाती चंचल नदी
जो बंध जाए तो नदी नहीं रहती
ताल तलैय्या बन जाती है….!
जो समंदर पर यकीन करती है
और मीठे से खारी हो जाती है….!
प्रेमिकाएं भी ऐसी ही होती हैं..
उनकी मजबूरी नहीं ये समाज,
किसी का सहयोग, अनमना सहवास
उनका अधिकार है, आनन्द का स्थायी ग्रास!
मत घोटना उनके मन में उठी
प्रेम की पहली किरण का गला
प्रेम धूरी की जगह
उन्हें मत लाना विवाह केंद्र पर
क्योंकि…
विफल प्रेमगाथाएँ ही प्रसिद्धि पाती हैं,
सफल प्रेमगाथाएँ तो गृहस्थी में विलीन हो जाती हैं!
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एकता सिरीकर
एकता सिरीकर अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़ से हैं। इन दिनों आप आकाशवाणी में उद्घोषिका के रूप में कार्यरत हैं। आपसे sirikarekta@gmail.com पे बात की जा सकती है।