1. रसोईघर माँ के हाथ जब भी मेरे कपड़े पर पड़ते उनमें से आटे, हल्दी और खड़े मसालों की ख़ुशबू आने लगती मैंने उसे तेईस सालों से रसोईघर के आस-पास ही देखा
हमारी रीढ़ मुड़ चुकी है “मैं” के बोझ से खड़े होने की कोशिश में औंधे मुंह गिर जाएंगे, खड़े होने की जगह पर खड़ा होना ही मनुष्य होना है। हमने मनुष्यता की परिभाषा चबाई
More1. स्मृतियों के अवशेष अवचेतन में सोए रहते हैं पुरानी डायरी की सोंधी सुगंध से एकाएक उठ बैठती हैं अल्हड़ जवान स्मृतियां और ठहाके मारकर हंसती हैं जैसे एक बच्चा खिलखिला रहा
More1. प्रेमिकाएं मैं किसी से कैसे प्रेम करूँ? लगभग मेरी सभी प्रेमिकाओं ने मुझे निराश किया है अब तक सूखे मौसम की तरह! आकाश भर प्रेम के बदले दुनिया भर की टूटी
More1. आवरण आँखों का अस्तित्व हर तरह की सत्ता के लिए ख़तरा है इसलिए आये दिन आँखें फोड़ दी जाने की ख़बरें हैं इससे पहले आपकी भी आँखें फोड़ दी जाएँ नज़र
More1. हमें 'हम' होना चाहिए हम बिछड़कर मर जायेंगे "मैं" और "तुम" में जबकि 'हम' में कितना सामर्थ्य है कि चींटियां अपने देह से भारी मलवा खींच ले जाती हैं 'हम' होकर
More1. रसोईघर माँ के हाथ जब भी मेरे कपड़े पर पड़ते उनमें से आटे, हल्दी और खड़े मसालों की ख़ुशबू आने लगती मैंने उसे तेईस सालों से रसोईघर के आस-पास ही देखा
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