वैसे तो मुझे स्टेशन जा कर लोगों को विदा देने का चलन नापसंद है, पर इस बार मुझे स्टेशन जाना पड़ा और मित्रों को विदा देनी पड़ी। इसके कई कारण थे। पहला
Moreपंडित जी, अस्सलाम अलैकुम। यह मेरा पहला ख़त है जो मैं आपको भेज रहा हूँ। आप माशा अल्लाह अमरीकनों में बड़े हसीन माने जाते हैं। लेकिन मैं समझता हूँ कि मेरे नाक-नक्श
Moreनई डायरी का नया पृष्ठ स्वप्न कभी-कभी स्फूर्तिदायक होते हैं। पिछले एक वर्ष से डायरी लिखने का शौक लगा। समय-समय पर कागज पर अंकित, एकांत क्षणों में मेरे अच्छे और बुरे विचार
Moreमैं स्वल्प-सन्तोषी हूँ। पतझर के झरते पत्ते से अधिक सुन्दर किसी चीज़ की कल्पना नहीं कर पा रहा हूँ। यह धीरे-धीरे, लय के साथ डोलते हुए झरना-मानो धरती के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त
Moreहम समय की नदी तैर कर आ गए अब खड़े हैं जहाँ वह जगह कौन है? तोड़ते-जोड़ते हर नियम, उपनियम उत्सवों के जिए साँस-दर-साँस हम एक पूरी सदी तैर कर आ गए
Moreचूल्हा मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का भूख रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ठाकुर का बैल ठाकुर का हल ठाकुर का हल की मूठ पर हथेली
Moreएक-दूसरे को बिना जाने पास-पास होना और उस संगीत को सुनना जो धमनियों में बजता है, उन रंगों में नहा जाना जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं। शब्दों की खोज शुरु होते ही
Moreकुछ का व्यवहार बदल गया। कुछ का नहीं बदला। जिनसे उम्मीद थी, नहीं बदलेगा उनका बदल गया। जिनसे आशंका थी, नहीं बदला। जिन्हें कोयला मानता था हीरों की तरह चमक उठे। जिन्हें
Moreचंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है उसे बड़ा अचरज होता है: इन काले चिन्हों से कैसे ये सब
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