स्त्रियाँ घर लौटती हैं

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विवेक चतुर्वेदी

स्त्रियाँ घर लौटती हैं
पश्चिम के आकाश में
उड़ती हुई आकुल वेग से
काली चिड़ियों की पांत की तरह

स्त्रियों का घर लौटना
पुरुषों का घर लौटना नहीं है
पुरुष लौटते हैं बैठक में फिर गुसल खाने में
फिर नींद के कमरे में
स्त्री एक साथ पूरे घर में लौटती है
वह एक साथ आंगन से
चौके तक लौट आती है

स्त्री बच्चे की भूख में
रोटी बन कर लौटती है
स्त्री लौटती है
दाल भात में … टूटी खाट में
जतन से लगाई मसहरी में
वो आंगन की तुलसी
और कनेर में लौट आती है

स्त्री है … जो प्रायः स्त्री की तरह नहीं लौटती
पत्नी, बहन मां या बेटी की तरह लौटती है
स्त्री है … जो बस रात की नींद में नहीं लौट सकती
उसे सुबह की चिंताओं में भी लौटना होता है

स्त्री चिड़िया सी लौटती है
और थोड़ी मिट्टी
रोज पंजों में भर लाती है
छोड़ देती है आंगन में
घर भी एक बच्चा है स्त्री के लिए
जो रोज थोड़ा और बड़ा होता है

लौटती है स्त्री .. तो घास आंगन की
हो जाती है थोड़ी और हरी
कबेलू छप्पर के
हो जाते हैं जरा और लाल
दरअसल एक स्त्री का घर लौटना
महज स्त्री का घर लौटना नहीं है
धरती का अपनी धुरी पर
लौटना है।

विवेक चतुर्वेदी
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विवेक चतुर्वेदी जबलपुर, मध्यप्रदेश से हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी कविताओं के अनुवाद भी अन्य भाषाओं में हुए हैं साथ ही आप मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित पुरस्कार वागीश्वरी सम्मान से भी सम्मानित हो चुके हैं।

विवेक चतुर्वेदी जबलपुर, मध्यप्रदेश से हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी कविताओं के अनुवाद भी अन्य भाषाओं में हुए हैं साथ ही आप मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित पुरस्कार वागीश्वरी सम्मान से भी सम्मानित हो चुके हैं।

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