नदी के दोनों पाट

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नदी के दोनों पाट भुवनेश्वर

नदी के दोनों पाट लहरते हैं
आग की लपटों में
दो दिवालिए सूदखोरों का सीना
जैसे फुँक रहा हो
शाम हुई
कि रंग धूप तापने लगे
अपनी यादों की
और नींद में डूब गई वह नदी
वह आग
वह दोनों पाट, सब कुछ समेत
क्योंकि जो सहते हैं जागरण
जिसका कि नाम दुनिया है
वह तो नींद के ही अधिकारी हैं
और यह भी कौन जाने
उन्हें सचमुच नींद आती भी है या !

भुवनेश्वर

भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव (१९१० - १९५७) हिंदी के प्रसिद्ध एकांकीकार, लेखक एवं कवि थे। 'हंस’ में 1933 में भुवनेश्वर का पहला एकांकी ‘श्यामा: एक वैवाहिक विडम्बना’ प्रकाशित हुआ था। 1935 में प्रकाशित एकांकी संग्रह ‘कारवां’ ने उन्हें एकांकीकार के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। भुवनेश्वर द्वारा लिखित नाटक ‘तांबे का कीड़ा’ (1946) को विश्व की किसी भी भाषा में भी लिखे गये पहले असंगत नाटक का सम्मान प्राप्त है। उनके द्वारा लिखित एकांकियों में ‘श्यामःएक वैवाहिक विडम्वना’, ‘रोमांसःरोमांच’, ‘स्ट्राइक’, ‘ऊसर’, ‘सिकन्दर’ आदि का नाम उल्लेखनीय है।

भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव (१९१० - १९५७) हिंदी के प्रसिद्ध एकांकीकार, लेखक एवं कवि थे। 'हंस’ में 1933 में भुवनेश्वर का पहला एकांकी ‘श्यामा: एक वैवाहिक विडम्बना’ प्रकाशित हुआ था। 1935 में प्रकाशित एकांकी संग्रह ‘कारवां’ ने उन्हें एकांकीकार के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। भुवनेश्वर द्वारा लिखित नाटक ‘तांबे का कीड़ा’ (1946) को विश्व की किसी भी भाषा में भी लिखे गये पहले असंगत नाटक का सम्मान प्राप्त है। उनके द्वारा लिखित एकांकियों में ‘श्यामःएक वैवाहिक विडम्वना’, ‘रोमांसःरोमांच’, ‘स्ट्राइक’, ‘ऊसर’, ‘सिकन्दर’ आदि का नाम उल्लेखनीय है।

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