तुम मुझे पहन सकते हो
कि मैं ने अपने आप को
धुले हुए कपड़े की तरह
कई दफ़अ’ निचोड़ा है
कई दफ़अ’ सुखाया है
तुम मुझे चबा सकते हो
कि मैं चूसने वाली गोली की तरह
अपनी मिठास की तह घुला चुकी हूँ
तुम मुझे रुला सकते हो
कि मैं ने अपने आप को क़त्ल कर के
अपने ख़ून को पानी पानी कर के
आँखों में झील बना ली है
तुम मुझे भून सकते हो
कि मेरी बोटी बोटी
तड़प तड़प कर
ज़िंदगी की हर साँस को
अलविदा’अ कह चुकी है
तुम मुझे मसल सकते हो
कि रोटी सूखने से पहले
ख़स्ता हो कर भुर्भुरी हो जाती है
तुम मुझे ता’वीज़ की तरह
घोल कर पी जाओ
तो मैं कलीसाओं में बजती घंटियों में
इसी तरह तुलूअ’ होती रहूँगी
जैसे गुल-ए-आफ़्ताब
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किश्वर नाहिद
किश्वर नाहिद (जन्म 1940) पाकिस्तान से एक नारीवादी उर्दू कवि है। उसने कविता की कई किताबें लिखी हैं। उसे उर्दू साहित्य में अपने साहित्यिक योगदान के लिए सितारा-ए-इम्तियाज के सहित कई पुरस्कार मिले हैं।