बड़े दिन की पूर्व साँझ

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मुझे नृत्य नहीं आता था। रुचि भी नहीं थी। मैंने ऐसा ही कहा था।

वह बोला – आता मुझे भी नहीं है।

मैंने सोचा बात खत्म है।

उसने हाथ में पकड़ी मोमबत्ती की तरफ देखा और हकबकाया सा हँस दिया – यह मैंने ले ली थी। मुझे पता नहीं था इसका मतलब यहाँ यह होता है।

सब अपनी अपनी मोमबत्तियों और लड़कियों के साथ फ्लोर पर थे। बैंड उसका इंतजार कर रहा था।

– देखिए प्लीज, मेरे दोस्तों में मेरी बहुत हँसी होगी अगर मैं नाच न पाया।

वह तब तक नर्वस हो गया था।

मैं उससे ज्यादा अटपटी हालत में थी। मैंने रूप की तरफ देखा, फिर उसकी तरफ।

मैंने निर्णयात्मक ढंग से कहा

– मैं शादीशुदा हूँ, यह मेरे पति हैं।

उसने मुझे छोड़ रूप से प्रार्थना करनी शुरु कर दी। बड़े दिन की पूर्व साँझ को नृत्य जाने बिना भी नाचना मैं अजीब न मानती, पर रूप ने मोमबत्ती नहीं खरीदी थी और हमारी शादी को सिर्फ पाँच दिन गुजरे थे। साढ़े चार दिन हम एक ही कमरे में कैद रहे थे और उठने के नाम पर बाथरूम तक जाते थे।

आज बाहर आते समय मुझे लगा, मैंने कहा भी – दिन सफेद नहीं लग रहा तुम्हें?

रूप ने सिर्फ कहा – लोग अभी भी बस की क्यू में खड़े हैं।

वह रूप से बात कर चुकने पर मेरी ओर ऐसे बढ़ा कि उसे अनुमति मिल गई है। मैंने रूप की ओर बिलकुल पत्नियों वाली निगाह से देखा। वह चौड़ा बड़ा पैग मुँह में उड़ेल रहा था।

हमारे फ्लोर पर आते ही बैंड शुरु हो गया। वह लड़का खुश था। उसने मोमबत्ती जला ली थी और ढूँढ़ ढूँढ़ कर दोस्तों की ओर देख रहा था। जिस किसी दोस्त से उसकी आँख मिल जाती, वह मुझे अधिक कस कर पकड़ लेता जैसे बच्चा एक और बच्चे को देख कर अपना खिलौना पकड़ता है।

मैं सोच रही थी वह मुझसे बोलेगा। उसे शायद नृत्य की तहजीब का पता न था। वह मुझसे बिलकुल बात नहीं कर रहा था, बस नर्वसनेस में बार-बार मुस्करा रहा था। उसे इस बात का काफी ख्याल था कि मोम मेरी साड़ी पर न गिर जाए।

प्रथा के विपरीत मैंने ही बात शुरु की – तुम्हारा नाम शायद जोशी है।

उसने कहा – नहीं, भार्गव!

– ऐसा नहीं लगता कि तुम पहली बार नाच रहे हो।

वह चुप रहा। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे फिर माफी माँगी – मैंने आज आपको बड़ा तंग किया, पर नृत्य करना मेरे लिए जरूरी था। यह एक…।

मैंने बीच में टोक दिया – मैं समझती हूँ।

वह मुझे आप कह कर संबोधित कर रहा था। मैंने अनुमान लगाया कि उसकी शादी अभी नहीं हुई थी। शादी के पहले मैं भी इतने लोगों को आप कहा करती थी कि अब मुझे ताज्जुब होता था।

वह बहुत छोटा और अकेला लग रहा था।

रूप को मैं जहाँ खड़ा छोड़ आई थी, उस ओर इस वक्त मेरी पीठ थी। मैंने उससे कहा – जरा देखना मेरे पति वहीं खड़े हैं क्या?

उसने कहा – नहीं, वह यहाँ नजर नहीं आते।

थोड़ी देर के लिए उसे पर्याप्त व्यस्तता मिल गई। जल्दी ही उसने बताया – हाँ, वह वहाँ हैं, उन्होंने एक और पैग ले रखा है।

वह रूप को रुचि से देखता रहा।

– वह उतना पी सकेंगे, मेरा मतलब, होश रखते हुए?

मैं हँसी, मैंने कहा – इस बात की चिंता मेरी नहीं।

वह डर गया। उसने मुझे ध्यान से देखा।

मैंने बताया – नहीं, मैं नहीं पीती।

वह दु:खी हो गया था – मैं ज्यादा नहीं पी सकता। हमारे मैस में सिर्फ ड्रिंक्स की पार्टियाँ होती हैं तो बड़ी असुविधा होती है।

मैंने कहा – तुमने घर पर कभी नहीं पी होगी।

उसने गर्व से बताया कि उसके घर में अंडा भी नहीं खाया जाता। जब से वह एयरफोर्स में आया तभी से उसने पहली बार यह सब देखा। घर पर उसने घरवालों को सिर्फ दूध, चाय या पानी पीते देखा था।

मैंने पूछा – तुमने चखी है?

– हाँ, मुझे बहुत कड़वी लगी है।

मैंने कहा – मुझे कड़वाहट पसंद है।

उसने मेरी तरफ ध्यान से देखा।

मैंने फिर आश्वासन दिया कि मैं वाकई नहीं पीती।

उस ओर जब तक मेरा मुँह हुआ, रूप वहाँ नहीं था।

मैंने एकदम उससे पूछा – मेरे पति कहाँ हैं?

वह सकपका गया – मैंने नहीं देखा; मुझे नहीं मालूम; मुझे अफसोस है।

मैंने उससे कहा – मैं जाना चाहूँगी।

भार्गव ने मुझे समझाना चाहा कि डांस नंबर के बीच में से जाने से उसकी स्थिति कितनी अजीब हो जाएगी।

उसने कहा – आपके पति बाग में गए होंगे, आ जाएँगे।

मुझे हँसी आने लगी। मैं रूप को ढूँढ़ने नहीं जा रही थी। दरअसल मैं उस ऊलजूलूल कवायद से तंग आ गई थी। अनभ्यस्त होने की वजह से हमारे जूते बार-बार एक दूसरे के पैर पर पड़ रहे थे। वह मेरी साड़ी पर बहुत बार पैर रख चुका था और मुझे उसके फटने की आशंका थी।

उसने कहा – मेरी मोमबत्ती के नीचे एक नंबर है, अगर उद्घोषणाओं के बाद यह शेष रहा तो मुझे कोई उपहार मिलेगा।

मैंने फ्लोर पर गिना, चार जोड़े बचे थे। उसे अपने लकी होने की काफी आशा थी।

उसने शर्माते हुए बताया कि वह रेस में हमेशा जीता है।

मैंने पूछा वह कितना लगाता है।

उसने कभी सौ से ज्यादा नहीं लगाया था। उसने कहा कि उसकी समझ में नहीं आता कि वह किस घोड़े पर लगाए। वह वहाँ जाता है… और उसके आगे खड़ा आदमी जिस घोड़े पर दाँव लगाता है, उसी पर वह लगा देता है।

मैंने उसका जन्मदिन पूछा और उसका लकी नंबर बताया। वह खुश हो गया।

उसने मुझसे कहा – आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूँ? आपके पति बुरा तो नहीं मानेंगे?

मुझे भार्गव पर लाड़ आने लगा। लगा यह सवाल लेकर उसने काफी माथापच्ची की होगी। इस वक्त वह सहमा-सा मुझे देख रहा था। मैंने कुछ नहीं कहा, बस, जहाँ रूप कुछ देर पहले खड़ा था, वहाँ देखकर चाव से हँस दी। उसे उत्तर की सख्त अपेक्षा थी। मैंने गर्दन से न कर दी।

– तुम्हारी कोई लड़की नहीं? – उसे लेकर मुझे जिज्ञासा हो रही थी।

उसने कहा – मेरी अभी शादी नहीं हुई।

मैं ने अंग्रेजी में कहा – मेरा मतलब लड़की-मित्र से था।

वह और नर्वस हो गया।

थोड़ी देर में संयत होकर उसने बताया कि उसकी माँ ने अब तक उसके लिए दर्जनों रिश्ते नामंजूर कर दिए हैं। वह खूबसूरत-सी लड़की चाहती है, बेशक वह इंटर ही पास हो।

हमारा नंबर इस बार आउट हो गया।

मैं हॉल में रूप को खोजना चाह रही थी। भार्गव भी साथ-साथ देख रहा था। मैंने कहा वह परेशान न हो मैं स्वयं ढूँढ़ लूँगी। मैं हॉल में देखने के बाद सीधे बार में गई। रूप बेतहाशा पी रहा था और उतना ही स्मार्ट लग रहा था जितना तब जब क्लब में घुसा था। हमारे वहाँ जाते ही रूप ने मेरे लिए जिन और उसके लिए व्हिस्की मँगाई। भार्गव डर गया।

मैंने रूप को इशारे से मना किया – भार्गव बहुत पी चुका है, अभी इसे मोटरसाइकिल पर बारह मील जाना है।

भार्गव ने कृतज्ञ आँखों से मुझे देखा। उसने एक बार फिर रूप से सफाई में कुछ कहा।

उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि, कितनी देर में ऑलराइट कह कर चले जाना चाहिए। वह जेब से मोटरसाइकिल की चाबी निकाल कर खेलने लगा।

रूप ने मुझे कोट पहनाना शुरु कर दिया क्योंकि हमारा इतनी देर बाहर रहना काफी साहस की बात थी, यह मानते हुए कि हमारी शादी को सिर्फ पाँच दिन हुए थे!

ममता कालिया

ममता कालिया (02 नवम्बर,1940) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है। वर्तमान में वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी" की संपादिका हैं।

ममता कालिया (02 नवम्बर,1940) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है। वर्तमान में वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी" की संपादिका हैं।

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