मेडिकल व्यवसाय की ख़ौफ़नाक सच्चाईयाँ उजागर करता ‘ह्यूमन’

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हॉटस्टार पर ह्यूमन सीरीज देखी जो भोपाल में फिल्माई गई हैं, भोपाल शहर को टीवी पर देखना अपने आप में रोचक है।

पिछले दिनों इसी शहर को लेकर विसलब्लोअर सीरीज आई थी, ह्यूमन सीरीज़ में भोपाल गैस त्रासदी से अनाथ बनी एक लड़की की कहानी है जिसे कोई डॉक्टर नाथ गोद लेता है, उसका शोषण करता है और बाद में वह लड़की बड़ी होकर प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट बनती है और उस डॉक्टर और उसके परिवार को खत्म करके मंथन नामक अस्पताल चालू करती है, उसका सपना है कि वह इस अस्पताल को विश्व स्तर का बनायें।

समय गुजरने पर यह अस्पताल षड्यंत्र का घर बना जाता है जहां पर ड्रग ट्रायल के धंधे चलते हैं, इस सीरीज में मूल रूप से तीन – चार औरतों की कहानियां है जो अपने इशारों पर पूरे तंत्र और राजनीति को नचाती है – साथ ही पैसे और हुस्न के बल पर पूरे तंत्र को जेब में रखती है ; अपनी महत्वकांक्षा पूरा करने के लिए जब कोई स्त्री अपने ही शरीर को इस्तेमाल करके सीढ़ी बना लेती है ऊंचाई पर चढ़ने के लिए तो उसे कोई रोक नहीं सकता और यह हम अपने आसपास भी देखते हैं, और यह सब इस सीरीज़ में होना कोई नया अजूबा नहीं है।

बहरहाल, सीरीज में काफी बारीकी से भोपाल गैस त्रासदी, एनजीओ की भूमिका, राजनीति, मुख्यमंत्री का रोल, ड्रग ट्रायल, फार्मा कंपनियों के षड्यंत्र और वह सब दिखाया है जो एक सभ्य समाज अभी देखना नहीं चाहता या अभी इतना मैंच्योर नहीं हुआ है कि घर – परिवार में बैठकर सहजता से देख सकें – डॉक्टर सायरा और डॉक्टर गौरी नाथ के संबंध शुरुआत में भले ही प्रेम से उपजे हुए लगते हो, परंतु बाद में पता चलता है कि गौरीनाथ सायरा जैसी कार्डियोलाजिस्ट ने बुरी तरह से इस्तेमाल किया।

अंत में सभी बारी – बारी से मर जाते हैं और एक सवाल छोड़ जाते हैं कि आखिर यह सब मध्यप्रदेश में क्यों हो रहा है, मुझे जेहन में भोपाल के हालात नजर आ रहे थे, वहां के मेडिकल कॉलेज नजर आ रहे थे, मुझे चिरायु अस्पताल नजर आ रहा था और वो सारे अस्पताल नजर आ रहे थे जहां पर ड्रग ट्रायल लगातार होता रहा है ; मुझे इंदौर का ड्रग ट्रायल वाला केस याद आ रहा था जहां डॉ नाडकर्णी, डॉ श्रीकांत रेगे जैसे लोगों को इंडियन मेडिकल काउंसिल ने एक लंबे समय के लिए प्रैक्टिस करने से रोक दिया था।

मूल सवाल वही है कि विसलब्लोअर हो या ह्यूमन मेडिकल क्षेत्र की शिक्षा या इलाज के तौर तरीके हो, यह मध्य प्रदेश की सरजमी पर ही क्यों होता है – हम सबको हकीकत मालूम है परंतु बोलना कोई नहीं चाहता, मेरा सुझाव मानकर यह सीरीज देख लीजिए काफी रोमांचक और शैक्षिक है।

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एलजीबीटी समुदाय को लेकर काफी खुलापन आया है यह समझना दिलचस्प है कि इस तरह के पुरुषों के गे या क्रॉस ड्रेसर या वृहन्नला के चरित्र तो हर फिल्म या सीरीज में खुले रूप से अब तक दिखाए जाते थे, भले ही मजाक बनाया जाता हो या गम्भीरता से भी, परन्तु इस सीरीज़ में पहली बार तीन सम्भ्रान्त पढ़ी – लिखी, ज़िम्मेदार और जवाबदार महिलाओं के लेस्बियन सम्बन्धों पर इतना खुलकर प्रदर्शन देखा, निश्चित ही यह बोल्ड एवं साहसिक कदम है पर अभी भारतीय समाज इस बात के लिये तैयार नही है।

घर पर बिस्तर पर पड़ा हूँ फुर्सत में यह बड़ा काम कर डाला – लगभग पांच घण्टों में फैली यह सीरीज आपको बांधे रखती है, अस्पताल, इलाज, षड्यंत्र, राजनीति, रुपया पैसा, विलासिता, अपने बच्चों से व्यवहार, हाई सोसाइटी का दोगलापन, गरीबी, फोटोग्राफी, गैस त्रासदी के विक्टिम्स का पत्रकारों से रुपया एंठना, ब्यूरोक्रेसी, कुत्तों की दास्ताँ और भोपाल शहर के तालाबों किनारे की शूटिंग, खूबसूरत मकान, और पुराने महलों में फिल्माई सीरीज़ बहुत प्रभावी है, शेफ़ाली शाह ने अभिनय का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है वही कीर्ति कुलहरी, सीमा विश्वास, राम कपूर, विशाल जेठवा, इंद्रनील सेनगुप्ता, संदीप कुलकर्णी और सुशील पांडेय भी गज्जब के कलाकार साबित हुए है इसमें।

संदीप नाईक

संदीप नाईक देवास मध्य प्रदेश में रहते हैं। अंग्रेजी, समाजशास्त्र, ग्रामीण विकास और शिक्षाशास्त्र में मास्टर डिग्री करने के बाद भविष्य अध्ययन में एमफिल हैं। हाल ही में उन्होंने कानून की स्नातक डिग्री प्राप्त की और अब वे मास्टर ऑफ लॉ कर रहे हैं। 35 वर्ष अलग-अलग पदों पर नौकरी करने के बाद इन दिनों वे फ्रीलांस काम करते हैं, अंग्रेजी हिंदी मराठी गुजराती में अनुवाद करते हैं और लिखने पढ़ने में रुचि रखते हैं। कहानी के लिए उन्हें हिंदी का प्रतिष्ठित वागेश्वरी सम्मान 2015 में प्राप्त हो चुका है, उनका एक कहानी संकलन "नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं" लोकप्रिय है। इसके अलावा उन्होंने 165 के करीब कविताएं लिखी हैं जो विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में प्रकाशित है। इन दिनों एक उपन्यास पर काम कर रहे हैं। आपसे naiksandi@gmail.com पे बात की जा सकती है।

संदीप नाईक देवास मध्य प्रदेश में रहते हैं। अंग्रेजी, समाजशास्त्र, ग्रामीण विकास और शिक्षाशास्त्र में मास्टर डिग्री करने के बाद भविष्य अध्ययन में एमफिल हैं। हाल ही में उन्होंने कानून की स्नातक डिग्री प्राप्त की और अब वे मास्टर ऑफ लॉ कर रहे हैं। 35 वर्ष अलग-अलग पदों पर नौकरी करने के बाद इन दिनों वे फ्रीलांस काम करते हैं, अंग्रेजी हिंदी मराठी गुजराती में अनुवाद करते हैं और लिखने पढ़ने में रुचि रखते हैं। कहानी के लिए उन्हें हिंदी का प्रतिष्ठित वागेश्वरी सम्मान 2015 में प्राप्त हो चुका है, उनका एक कहानी संकलन "नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं" लोकप्रिय है। इसके अलावा उन्होंने 165 के करीब कविताएं लिखी हैं जो विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में प्रकाशित है। इन दिनों एक उपन्यास पर काम कर रहे हैं। आपसे naiksandi@gmail.com पे बात की जा सकती है।

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