एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए आगाज़े-आशिक़ी का मज़ा आप
खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े देख मे’मार परिंदे भी रहें घर भी बने नक़्शा ऐसा हो कोई पेड़ गिराना न
Moreगरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी
Moreकोई हँस रहा है कोई रो रहा है कोई पा रहा है कोई खो रहा है कोई ताक में है किसी को है गफ़लत कोई जागता है कोई सो रहा है कहीं
Moreकोई पास आया सवेरे सवेरे मुझे आज़माया सवेरे सवेरे मेरी दास्ताँ को ज़रा सा बदल कर मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे जो कहता था कल शब सँभलना सँभलना वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे
Moreज़िस्म की भूख कहें या हवस का ज्वार कहें। सतही जज्बे को मुनासिब नहीं है प्यार कहें॥ बारहा फ़र्द की अज़मत ने जिसे मोड़ दिया। हम भला कैसे उसे वक़्त की रफ़्तार
Moreएक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए आगाज़े-आशिक़ी का मज़ा आप
Moreलुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने तू ने दिल इतने सताए
Moreइश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझको दिल धड़कता हुआ सीने में मिला था मुझ को। हाँ ये काफ़िर उसी हुजरे में मिला था मुझको एक मोमिन जहाँ सज्दे में
Moreघर में ठन्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है बगावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में मैं जब भी देखता
Moreहम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बाद फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बाद कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद थे
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