मेरा दुश्मन

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज मिला दी थी कि खाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस

More

आधे घंटे का ख़ुदा

वो आदमी उसका पीछा कर रहे थे। इतनी बुलंदी से वो दोनों नीचे सपाट खेतों में चलते हुए दो छोटे से खिलौनों की तरह नज़र आ रहे थे। दोनों के कंधों पर

More

यही सच है

1. कानपुर सामने आँगन में फैली धूप सिमटकर दीवारों पर चढ़ गई और कंधे पर बस्ता लटकाए नन्हे-नन्हे बच्चों के झुंड-के-झुंड दिखाई दिए, तो एकाएक ही मुझे समय का आभास हुआ। घंटा

More

क़ब्रों का विलाप

/

अमीर इंसाफ की गद्दी पर बैठा। उसके दाएं-बाएं देश के विद्वान बैठे थे। उनके चढ़े हुए चेहरों पर किताबों की छाया खेल रही थी। आस-पास सिपाही तलवारें थामे और नेजे उठाये खड़े

More

पितृहत्या

खिड़की के कांच पर हल्की खटखटाहट― ―कौन? ―चौकीदार, साहिब। अन्दर से माँ ने झाँका― ―क्या बात है चौकीदार―आज इतनी जल्दी ―खिड़की-दरवाजे बंद कर लीजिए। मेहमानों को बाहर न निकलने दीजिए―शहर में बड़ा

More

बदन की ख़ुशबू

कमरे की नीम-तारीक फ़िज़ा में ऐसा महसूस हुआ जैसे एक मौहूम साया आहिस्ता-आहिस्ता दबे-पाँव छम्मन मियाँ की मसहरी की तरफ़ बढ़ रहा है। साये का रुख़ छम्मन मियाँ की मसहरी की तरफ़

More

यह कहानी नहीं

पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता, तो घर की दीवारें बन सकता था। पर बना नहीं। वह धरती पर फैल गया,

More

लाजवंती

‘हथ लायाँ कुमलान नी लाजवन्ती दे बूटे।’ (ए सखि ये लाजवंती के पौधे हैं, हाथ लगाते ही कुम्हला जाते हैं.) (पंजाबी गीत) बटवारा हुआ और बेशुमार ज़ख़्मी लोगों ने उठ कर अपने

More

आषाढ़ का एक दिन

पात्र परिचय अंबिका : ग्राम की एक वृद्धा मल्लिका : वृद्धा की पुत्री कालिदास : कवि दंतुल : राजपुरुष मातुल : कवि मातुल निक्षेप : ग्राम-पुरुष विलोम : ग्राम-पुरुष रंगिणी : नागरी

More

ठंडा गोश्त

ईशर सिंह जूंही होटल के कमरे में दाख़िल हुआ, कुलवंत कौर पलंग पर से उठी। अपनी तेज़ तेज़ आँखों से उसकी तरफ़ घूर के देखा और दरवाज़े की चटख़्नी बंद कर दी।

More
1 2 3 4