क़र्ज़ की पीते थे

एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे। बाहर हुआदार मौजूद था। उस में बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवान-ख़ाने में

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तुलादान

धोबी के घर कहीं गोरा चिट्टा छोकरा पैदा हो जाए तो उस का नाम बाबू रख देते हैं। साधू राम के घर बाबू ने जन्म लिया और ये सिर्फ़ बाबू की शक्ल-ओ-सूरत

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पितृ हत्या

खिड़की के कांच पर हल्की खटखटाहट ― ― कौन? ― चौकीदार, साहिब। अन्दर से माँ ने झाँका ― ― क्या बात है चौकीदार, आज इतनी जल्दी? ― खिड़की-दरवाजे बंद कर लीजिए। मेहमानों

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नया गणित

चुनाव से चंद महीने पहले मंत्री महोदय अपने चुनाव क्षेत्र में इस तरह आये जैसे मस्त और घबराया भैंसा लगातार खेदे जाने के बाद बाड़े में घुसता है, यानी बाड़े में तूफान

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देवधर की स्मृतियाँ

डॉक्टरों के आदेशानुसार दवा के बदलाव के लिए देवधर को जाना पड़ा। चलते वक्त कविगुरु की एक कविता बार-बार स्मरण होने लगी – “औषुधे डाक्टरे व्याधिर चेये आधि हल बड़ करले जखन

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वरना हम भी आदमी थे काम के

लोग मुझे कवि कहते हैं, और गलती करते हैं; मैं अपने को कवि समझता था और गलती करता था। मुझे अपनी गलती मालूम हुई मियाँ राहत से मिलकर, और लोगों को उनकी

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मुझ से पहले

मुझ से पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा उस ने शायद अब भी तिरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो एक बे-नाम सी उम्मीद पे अब भी शायद अपने ख़्वाबों के जज़ीरों

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दिल के ‘दाग़’

“सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं ख़त ग़ैर का पढ़ते थे जो टोका तो वो बोले अख़बार का पर्चा है ख़बर

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एक बात और

मैक्सीन — एल.डी की पत्नी — जब काम से घर लौटी तो उसने पाया एल.डी किचन टेबल पर अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी रे से बहस कर रहा है. बहस करते हुए वह

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