इस स्त्री से डरो

यह स्त्री सब कुछ जानती है पिंजरे के बारे में जाल के बारे में यंत्रणागृहों के बारे में। उससे पूछो पिंजरे के बारे में पूछो वह बताती है नीले अनन्त विस्तार में

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इस बहरे वक़्त में

खेलते हुए अन्य बच्चों के साथ अपने साथ हो रहे खेड़ी का विरोध कर रहा है मेरा बेटा चिल्ला-चिल्लाकर काफ़ी कर्कश लग रही है आवाज़ उसकी बार-बार जाने को होता हूँ तैयार

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रेख़्ते में कविता

जैसे कोई हुनरमंद आज भी घोड़े की नाल बनाता दिख जाता है ऊँट की खाल की मशक में जैसे कोई भिश्‍ती आज भी पिलाता है जामा मस्जिद और चांदनी चौक में प्‍यासों

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हीर सुफ़ियां

हीर सुफ़ियां है एक सुन्दर लड़की हीर सुफ़ियां के हैं उनतीस दांत हीर सुफ़ियां मुस्काती है तो लाल किले की लाल दीवार और सुर्ख़ हो जाती है चांदनी चौक में रहती है

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संघर्ष साझे नहीं होते

जीवन के संघर्ष साझा नहीं होते साझा होती है सहानुभूतियाँ साझा होती हैं प्रार्थनाएँ साझा होते हैं स्नेह आलिंगन साझा होती है आँसू पोंछने वाली हथेलियाँ साझा होती है हाथों की फँसी

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पुरखों का कहन

उनकी कविताओं में शब्द नहीं बोलते उनके बनाए चित्रों में रंग नहीं बहकते उनकी कहानियों में तख़्त-ओ-ताज के लिए ख़ून नहीं बहता फिर भी वे कविता करते हैं चित्र बनाते हैं कहानियाँ

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कथा देश की

ढंगों और दंगों के इस महादेश में ढंग के नाम पर दंगे ही रह गये हैं। और दंगों के नाम पर लाल खून, जो जमने पर काला पड़ जाता है। यह हादसा

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मीर

मीर पर बातें करो तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं जितने मीर और तुम्हारा वह कहना सब दीवानगी की सादगी में दिल-दिल करना दुहराना दिल के बारे में ज़ोर

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बड़ी हो रही है लड़की

जब वह कुछ कहती है उसकी आवाज़ में एक कोई चीज़ मुझे एकाएक औरत की आवाज़ लगती है जो अपमान बड़े होने पर सहेगी वह बड़ी होगी डरी और दुबली रहेगी और

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एक नया अनुभव

मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ। चिड़िया नें मुझ से पूछा, ‘तुम्हारे शब्दों में मेरे परों की रंगीनी है?’ मैंने कहा, ‘नहीं’। ‘तुम्हारे शब्दों में मेरे

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