न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है

1 min read

हारा है इश्क़ और दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है

सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है

खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है

वो मौजूद हैं और उन की कमी है
मोहब्बत भी तन्हाई-ए-दाइमी है

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है

अरे जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
ख़मोशी जफ़ाओं की ताईद भी है

मिरे राहबर मुझ को गुमराह कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब गई है

‘ख़ुमार’-ए-बला-नोश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है

खुमार बाराबंकवी
+ posts

15 सितम्बर 1919 को जन्मे खुमार बाराबंकवी का मूल नाम मोहम्मद हैदर खान था। बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग 'दुल्लन' भी बुलाते थे।

15 सितम्बर 1919 को जन्मे खुमार बाराबंकवी का मूल नाम मोहम्मद हैदर खान था। बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग 'दुल्लन' भी बुलाते थे।

नवीनतम

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो

कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन

भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से