न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है
वो मौजूद हैं और उन की कमी है
मोहब्बत भी तन्हाई-ए-दाइमी है
चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है
अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
ख़मोशी जफ़ाओं की ताईद भी है
मिरे राहबर मुझ को गुमराह कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है
‘ख़ुमार’-ए-बला-नोश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है

खुमार बाराबंकवी
15 सितम्बर 1919 को जन्मे खुमार बाराबंकवी का मूल नाम मोहम्मद हैदर खान था। बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग 'दुल्लन' भी बुलाते थे।