यह आषाढ़ जो तुमने मां के साथ रोपा था हमारे खेतों में घुटनों तक उठ गया है अगले इतवार तक फूल फूलेंगे कार्तिक पकेगा हमारा हँसिया झुकने से पहले हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा उसी तरह जिस तरह झुक कर तुमने आषाढ़ रोपा था।

लीलाधर जगूड़ी
लीलाधर जगूड़ी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि हैं जिनकी कृति अनुभव के आकाश में चांद को 1997 में पुरस्कार प्राप्त हुआ।