मैंने कभी नहीं सोचा था
सुबह तक ख़त्म हो जाऊँगा मैं
और एक जंगल सी समादृत रहोगी तुम
मेरे हृदय के किसी गहरे एकांत में सदा
तुम कभी नहीं समझोगी
तुम्हारे होने में ही
मेरा होना था विनोदिनी !
सदियों पहले एक चाँद टूटकर
गिरा था ठीक वहीं
जहाँ मिली थी तुम मुझे
और स्वेद में लिपटा
अपभ्रंश सा एक चेहरा
सहसा छिटककर उभर आया था
उस शफ़्फ़ाक़ से कैनवास में
मुश्किल था मेरे लिये
बहुत मुश्किल
इस विभ्रम से पार पाना
समझ पाना
हमारे रिश्ते के व्याकरण को
एक नये सिरे से
जैसे किसी स्याह रात के
कलेजे को काटकर
गुजरती है कोई नज़्म
बस वैसे ही धंसती गयी
तुम मेरे सीने में आकर
तुम्हारे माथे से लेकर होंठों तक का
एक संस्पर्श जो आकर बंध गया
मेरी सर्द उंगलियों में
वहाँ अब जले हुए से कुछ ज़ख़्म हैं
और ये हथेलियाँ अब मेरा कैनवास
जहाँ अंकित हैं हमारी साझी स्मृतियाँ
सारी पीड़ा मैं अपनी साँसों में रोक लेता हूँ
देखो तो अब मैं केवल सुख की बातें करता हूँ
तुम मानती क्यों नहीं
हमें अंत तक साथ होना था विनोदिनी !

स्मिता सिन्हा
स्मिता सिन्हा मूलतः पटना से हैं और हिंदी कविता पट्टी में एक सशक्त नाम हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे smitaminni3012@gmail.com पे बात की जा सकती है।