उन्होंने उसके मुँह पर ज़ंजीरें कस दीं
मौत की चट्टान से बाँध दिया उसे
और कहा — तुम हत्यारे हो
उन्होंने उससे भोजन, कपड़े और अण्डे छीन लिए
फेंक दिया उसे मृत्यु-कक्ष में
और कहा — चोर हो तुम
उसे हर जगह से भगाया उन्होंने
प्यारी छोटी लड़की को छीन लिया
और कहा — शरणार्थी हो तुम, शरणार्थी
अपनी जलती आँखों
और रक्तिम हाथों को बताओ
रात जाएगी
कोई क़ैद, कोई ज़ंजीर नहीं रहेगी
नीरो मर गया था रोम नहीं
वह लड़ा था अपनी आँखों से
एक सूखी हुई गेहूँ की बाली के बीज़
भर देंगे खेतों को
करोड़ों-करोड़ हरी बालियों से
[अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय]
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महमूद दरवेश
महमूद दरविश (1942 – 2008) की पहचान महान फिलिस्तीनी कवि तथा लेखक के रूप में है। अपनी रचनाओं के लिए उन्हें फिलिस्तीन का राष्ट्र-कवि माना जाता है। साहित्यिक जगत के अनेक सम्मान प्राप्त कर चुके दरविश को अपनी कविताओं के पाठ के लिए जेल की सज़ा भी झेलनी पड़ी। दरविश को अपने ही देश में विस्थापित जनता की आवाज माना जाता है।