इश्क़ का रोग

इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझको दिल धड़कता हुआ सीने में मिला था मुझ को। हाँ ये काफ़िर उसी हुजरे में मिला था मुझको एक मोमिन जहाँ सज्दे में

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घर में ठंडे चूल्हे पर

घर में ठन्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है बगावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में मैं जब भी देखता

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ढाका से वापसी पर

हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बाद फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बाद कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद थे

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इश्क़ में जाँ से गुज़रते हैं गुज़रने वाले

इश्क़ में जाँ से गुज़रते हैं गुज़रने वाले मौत की राह नहीं देखते मरने वाले आख़िरी वक़्त भी पूरा न किया वादा-ए-वस्ल आप आते ही रहे मर गये मरने वाले उठ्ठे और

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दुआ करो

दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही

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हस्ती अपनी हबाब की सी है

हस्ती अपनी हबाब की सी है ये नुमाइश सराब की सी है नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए पंखुड़ी इक गुलाब की सी है बार-बार उस के दर पे जाता हूँ हालत

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कोई उम्मीद बर नहीं आती

कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यूँ रात भर नहीं आती आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी अब किसी बात पर

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आपकी याद आती रही रातभर

आपकी याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई शम्म’ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन कोई तस्वीर गाती रही

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मेरे स्वप्न

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे थोड़ी आँच

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आहट सी कोई आए तो लगता है

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में शरमाए लचक जाए तो लगता

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