एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए आगाज़े-आशिक़ी का मज़ा आप
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं मैं बे-पनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं तिरी ज़बान
Moreतेरे आने की जब ख़बर महके तेरी ख़ुशबू से सारा घर महके शाम महके तेरे तसव्वुर से शाम के बाद फिर सहर महके रात भर सोचता रहा तुझको ज़हन-ओ-दिल मेरे रात भर
Moreजब से क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम ख़ुद अपने आइने को लगे अजनबी से हम कुछ दूर चल के रास्ते सब एक से लगे मिलने गए किसी से मिल आए
Moreकू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई
Moreवो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का उधर लाखों
Moreन जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की उजालों की परियाँ नहाने लगीं नदी गुनगुनाई ख़यालात की मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई ज़बाँ
Moreमैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ तू किसी रेल-सी गुज़रती है मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ हर
Moreज़िस्म की भूख कहें या हवस का ज्वार कहें। सतही जज्बे को मुनासिब नहीं है प्यार कहें॥ बारहा फ़र्द की अज़मत ने जिसे मोड़ दिया। हम भला कैसे उसे वक़्त की रफ़्तार
Moreएक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए आगाज़े-आशिक़ी का मज़ा आप
Moreलुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने तू ने दिल इतने सताए
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