मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती हूँ रूखी-सूखी कहीं कमज़ोर न हो जाऊँ पीती हूँ फलों का रस अपनी देह का ख़याल

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तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही थी पसीने की बू तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी साँसों में थी, बस, जीवन-गन्ध

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घर पहुँचना

हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम

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इतना सहज नहीं है विश्व

इतना सहज नहीं है विश्व कि झरने झरते रहें पहाड़ कभी झुकें ही नहीं नदी आए और कहे कि मैं हमेशा बहूँगी तुम्हारे साथ शहर के क़ानून तुम्हारे मुताबिक़ मानवीय हो जाएँ

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जीवन वृत्तांत

उठाया ही था पहला कौर कि पगहा तुड़ाकर भैंस भागी कहीं और पहुंचा ही था खेत में पानी कि छप्पर में आग लगी, बिटिया चिल्लानी आरंभ ही किया था गीत का बोल

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घर से भागी हुई लड़की

परीक्षा में फ़ेल हो जाने पर या माँ-बाप से लड़कर घर से भाग जाता है लड़का दुख व्यक्त करते हैं लोग लड़का कहीं कर लेता है दो रोटी का जुगाड़ या फिर

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राजा ने आदेश दिया

राजा ने आदेश दिया : बोलना बन्द क्योंकि लोग बोलते हैं तो राजा के विरुद्ध बोलते हैं। राजा ने आदेश दिया : लिखना बन्द क्योंकि लोग लिखते हैं तो राजा के विरुद्ध लिखते हैं।

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काली मिट्टी

काली मिट्टी काले घर दिनभर बैठे-ठाले घर काली नदिया काला धन सूख रहे हैं सारे बन काला सूरज काले हाथ झुके हुए हैं सारे माथ काली बहसें काला न्याय खाली मेज पी

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कविता की जरुरत

बहुत कुछ दे सकती है कविता क्यों कि बहुत कुछ हो सकती है कविता ज़िन्दगी में अगर हम जगह दें उसे जैसे फलों को जगह देते हैं पेड़ जैसे तारों को जगह

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