हम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह हम ने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों
देखो उस का हिज्र निभाना पड़ता है वो जैसा चाहे हो जाना पड़ता है सुनते कब हैं लोग हमें बस देखते हैं चेहरे को आवाज़ बनाना पड़ता है इन अंधे और बहरे
Moreमैं खुजूरों-भरे सहराओं में देखा गया हूँ तख़्त के बा’द तिरे पाँव में देखा गया हूँ दफ़्न होती हुई झीलों में ठिकाने हैं मिरे ख़ुश्क होते हुए दरियाओं में देखा गया हूँ
Moreहम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह हम ने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों
Moreउस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं उस को खो कर तो मिरे पास
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