महीनों बाद दफ़्तर आ रहे हैं हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं तेरी बाहों से दिल उकता गया हैं अब इस झूले में चक्कर आ रहे हैं कहाँ सोया है
महीनों बाद दफ़्तर आ रहे हैं हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं तेरी बाहों से दिल उकता गया हैं अब इस झूले में चक्कर आ रहे हैं कहाँ सोया है
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते दो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते इक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना इक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते कम-हिम्मती ख़तरा है