बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है वस्ल है और फ़िराक़ तारी है जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है निघरे क्या हुए कि लोगों पर अपना साया भी

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तुझसे तो कोई गिला नहीं है

तुझसे तो कोई गिला नहीं है क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है बिछड़े तो न जाने हाल क्या हो जो शख़्स अभी मिला नहीं है जीने की तो आरज़ू ही कब थी

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चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा बुझ गई आस छुप गया तारा थरथराता रहा धुआँ तन्हा ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हा है और जाँ

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ग़ज़ाला तबस्सुम की ग़ज़लें

1. फिर नफ़रतों ने इश्क़ की मीनार तोड़ दी दरवाज़ा जब न टूटा तो दीवार तोड़ दी फूलों से उसको प्यार है तोड़ा नहीं उन्हें उसने कली मेरे लिए इक बार तोड़

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नवनीत शर्मा की ग़ज़लें

1. मेरा दुश्‍मन मेरे अंदर से उभर आया है मेरा साया ही मुझे ग़ैर नज़र आया है इश्क़ में सर भी झुका और अना भी डूबी ओखली झूम के नाची है कि

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अपनी मंज़िल से जा लगा कोई

अपनी मंज़िल से जा लगा कोई अब न देखेगा रास्ता कोई सूनी–सूनी सी रहगुज़र क्यूँ है आज गुज़रा न क़ाफ़िला कोई आज पत्थर उदास बैठे हैं आज टूटा है आइना कोई ख़ुशबूऐं आ

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कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया

कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया और कुछ तल्ख़ी-ए-हालात ने दिल तोड़ दिया हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया

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आपकी याद आती रही रात भर

आप की याद आती रही रात भर चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर रात भर दर्द की शम्अ जलती रही ग़म की लौ थरथराती रही रात भर बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा याद

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