प्रेतकल्प

ओ समय! किस घाट पर खड़े हो अन्यमनस्क किस प्रतीक्षा की देहरी पर टिके हो ध्यानापन्न कहाँ ले जाओगे इतना बड़ा न्यायशास्त्र ढोकर अपनी रीढ़ पर चल रहे हो या क्लांत पड़े

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