कलगी बाजरे की

हरी बिछली घास। दोलती कलगी छरहरे बाजरे की। अगर मैं तुम को ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका अब नहीं कहता, या शरद के भोर की नीहार – न्हायी कुँई, टटकी

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