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ग़ज़ल

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं उस को खो कर तो मिरे पास

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं

ग़ज़ल

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं उस को खो कर तो मिरे पास

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