जब बिखरी हुई यादें पड़ी होती हैं काली रौशनी के मानिंद तो ग़ैर-जरूरी चीजें साथ देती हैं मसलन खुली सड़क को ताकना ठंडी चाय की छाली हटा कर पीना और फिर सब
खिड़की के कांच पर हल्की खटखटाहट ― ― कौन? ― चौकीदार, साहिब। अन्दर से माँ ने झाँका ― ― क्या बात है चौकीदार, आज इतनी जल्दी? ― खिड़की-दरवाजे बंद कर लीजिए। मेहमानों
Moreलोग मुझे कवि कहते हैं, और गलती करते हैं; मैं अपने को कवि समझता था और गलती करता था। मुझे अपनी गलती मालूम हुई मियाँ राहत से मिलकर, और लोगों को उनकी
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