हम सब तो खड़े हैं मक़तल में

हम सब तो खड़े हैं मक़तल में क्या हमको ख़बर इस बात की है जिस जुल्म को हम सौग़ात कहें सौग़ात वो काली रात की है हम जिसको मसीहा कह बैठे वो

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ये बातें झूठी बातें हैं

ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं तुम इंशा जी का नाम न लो, क्या इंशा जी सौदाई हैं? हैं लाखों रोग ज़माने में, क्यों इश्क़ है रुसवा बेचारा हैं

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तन्हाई

फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहीं राह-रौ होगा कहीं और चला जाएगा ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़ सो गई रास्ता तक तक

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