सुनो चारुशीला

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कविता : सुनो चारुशीला

दिवंगत पत्नी विजय के लिए 

तुम अपनी दो आँखों से देखती हो एक दृश्य
दो हाथों से करती हो एक काम
दो पाँवों से
दो रास्तों पर नहीं एक ही पर चलती हो

सुनो चारुशीला!
एक रंग और एक रंग मिलकर एक ही रंग होता है
एक बादल और एक बादल मिलकर एक ही बादल होता है
एक नदी और एक नदी मिलकर एक ही नदी होता है

नदी नहीं होंगे हम
बादल नहीं होंगे हम
रंग नहीं होंगे तो फिर क्या होंगे
अच्छा ज़रा सोचकर बताओ
कि एक मैं और तुम मिलकर कितने हुए

क्या कोई बता सकता है
कि तुम्हारे बिन मेरी एक वसंत ऋतु
कितने फूलों से बन सकती है
और अगर तुम हो तो क्या मैं बना नहीं सकता
एक तारे से अपना आकाश।

नरेश सक्सेना
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हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि नरेश सक्सेना का जन्म 16 जनवरी 1939 को मध्य-प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। सीधी भाषा में उन्होंने अपनी कविताएं कहीं हैं और वैज्ञानिक तथ्यों का विलक्षण प्रयोग काव्य के माध्यम से किया है। उन्होंने टेलीविजन और रंगमंच के लिए भी लेखन किया है। निर्देशन के लिए उन्हें 1992 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि नरेश सक्सेना का जन्म 16 जनवरी 1939 को मध्य-प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। सीधी भाषा में उन्होंने अपनी कविताएं कहीं हैं और वैज्ञानिक तथ्यों का विलक्षण प्रयोग काव्य के माध्यम से किया है। उन्होंने टेलीविजन और रंगमंच के लिए भी लेखन किया है। निर्देशन के लिए उन्हें 1992 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

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